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पोर जो संस्थाए इस पुनीत कार्य मे सलग्न हैं उनकी नामावली प्रथ के प्रारम्भिक भाग मे आ गई है उन-उन विशिष्ट मित्रो के यशस्वितम परिश्रम को दृष्टि पथ मे लाते हुए मन पाश्वस्त होता है कि इस वाङ्मय रूपी कल्प वृक्ष का प्रगले पचास वर्षों मे शतश. सहस्रशः विस्तार सम्भव हो सकेगा।
यद्यपि प्राचीन पागम साहित्य प्रकाशित हो चुका है, किन्तु उसको नियुक्ति, चूरिण, भाष्य, टीका आदि के साथ अभिनव रूप मे भूमिका, टिप्पणी, शब्दानुक्रमणी प्रादि के साथ पुन. प्रकाशित करने के कार्य शेष ही है। जब वे इस रूप में उपलब्ध होगे तभी उनसे सास्कृतिक सामग्री के दोहन का कार्य पूरा किया जा सकेगा। इस युग का महनीय उद्देश्य तो भारतीय राष्ट्र का सर्वांग पूर्ण सांस्कृतिक इतिहास है। यह कितना विशाल कार्य और कैसा उदात्त लक्ष्य है इसकी कल्पना सहसा मन मे नही पाती। किन्तु अभी तो कार्य का प्रारम्भ मात्र है। सांस्कृतिक इतिहास के निर्माण की कला अभी विकसित होने लगी है। यह महान कार्य अनेक सकल्पवानु साधको की अपेक्षा रखता है। एक-एक शब्द का मूल्य मणिमुक्ता की भाँति चतुराई से परखना होगा, उसके सूत्रो को बौद्ध साहित्य, संस्कृत साहित्य एव प्रादेशिक भाषामो के साहित्य मे ढूढना होगा। तब सब की सम्मिलित आभा से ऐतिहासिक के मन मे अर्थों का पूरा मालोक प्रकट हो सकेगा। इसकी कल्पना से ही रोमाञ्च होता है। भारत के भावी इतिहासकारो के लिए सास्कृतिक सामग्री के सुमेरू स्तब्ध खड़े हैं, जिनकी परिक्रमा लगानी होगी। हम जिस इष्टि कोण की कल्पना कर रहे है उसमे इतिहास, साहित्य, संस्कृति, कला, धर्म, दर्शन और जीवन-परम्परा-इन सात सूत्रो को एक साथ मिलाकर भारती महाप्रजा के राष्ट्रीय पुरावृत्त का दिव्य इन्द्रायुधाम्बर सम्पन्न करना होगा। यहाँ मभेद, समन्वय, सप्रीति का दृष्टिकोण मुख्य है । काल के प्रवाह मे जो कुछ बचा रह गया है वह मात्रा मे कितना विस्तृत है इसकी टकसाली साक्षी जैन शास्त्र भडारो में उपलब्ध पप राशि से प्राप्त हुई है। श्री बेलगकर द्वारा संगृहीत "जिनरत्नकोश' इस क्षेत्र का भव्य प्रयत्न है। यह