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________________ ( २२१ ) वैराग्य मणिमाला - से० श्री चन्द्राचार्य, भा० स०; (ग्रन्यत्रयी तथा तत्त्वानु शासनादि संग्रह में प्र० ) शकुन सिद्धान्त दर्पण - सपा० सुमेरचद उन्नीषु प्र० मूलचन्द किशनदास कापडिया सूरत, भाषा हिन्दी; पु० ५६, व० ११३८, प्रा० प्रथम । शब्दानुशासनम्-ले० शाकटायनाचार्य, स० टी० प्रभय चन्द्र सूरि ( प्रक्रिया संग्रह), सपा० पं० ज्येष्ट राम मुकुन्द जी शर्मा, प्र० पन्नालाल जैन बम्बई, भा० स० हि०, पृ० ४८८ ० १६०७ । शब्दानुशासनम् - ले० शाकटायनाचार्य; सं० टी० यक्षवर्ग (चितामणि वृत्ति), सपा० पडित मुन्नालाल, प्र० भारतीय जैन सिद्धान्न प्रकाशनी संस्था काशी, भा० सं० हि०, पृ० ८०, व० १६२६ । शब्दात्र चन्द्रिका - ले० सोमदेव सूरि, सपा० श्रीलाल जैन, प्र० भारतीय जैन सिद्धान्त प्रकाशनी मस्था काशी भा० संस्कृत, पृ० २६९, व० १६१५, ० प्रथम । श्वेताम्बर मत समीक्षा - ले० प० प्रजित कुमार शास्त्री, प्र० प० वशीषद शोलापुर, भा० हि०, पृ० २७६, व० १६३०, आ० प्रथम । श्रद्धा ज्ञान और चारित्र - ले० चम्पतराय बैरिस्टर, अनु० कामता प्रसाद, ० साहित्य मडल देहली, मा० हि०, पृ० /१५ व० १६३२, श्रा० प्रथम । अंगार वैराग्य तरगिणी - ले० सोमप्रभाचार्य, प्र० जगजीवन सुन्दर श्रावक भा० स० पृ० १६, व० १८८५ प्रा० प्रथम । श्रमण नारद - ले० प० नाथूराम प्रेमी, प्र० जैन ग्रन्थरत्नाकर कार्यालय बम्बई, भा० हि०, पृ० ३० व० १६१८ । श्रमण भगवान महावीर - लेखक मुनि कल्याण विजय, भा० हि०, पृ० ४३२, व० १६४१ । श्रावक धर्म प्रकाश -- लेखक सूर्य सागर प्राचार्य प्र० श्रीमंत सेट ऋषभ कुमार खुरई, भा० हि० पू० ११० १० १६३१, आ० द्वितीय ।
SR No.010137
Book TitlePrakashit Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Jain, Jyoti Prasad Jain
PublisherJain Mitra Mandal
Publication Year1958
Total Pages347
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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