SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 37
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (१५) या दानादि द्वारा जैन पुस्तके और पत्र पत्रिकाए भले ही आ जाय किन्तु उनके ऊपर कुछ व्यय करने की अयवा उनका संग्रह करने की कोई प्रवृत्ति नही है और न कोई प्रावश्यकता ही समझी जाती है। उनमे अध्ययन करने वाले विद्यार्थियों की जैन साहित्यादि के अध्ययन मे अभिरुचि और आकर्षण तो तब हो जबकि उनके अध्यापको मे से भी कुछ की हो । यही दशा जैन छात्रावासो-जैन वोडिग हाउसो और होस्टलो की है। यह ठीक है कि वर्तमान युग धर्म स्वातन्त्रय और असाम्प्रदायिकता का है अतएव सार्वजनिक लौकिक शिक्षा मे किसी धर्म अथवा सम्प्रदाय विशेष की धार्मिक शिक्षा का सम्मिलित किया जाना उचित नही समझा जाता, वरन् न्याय विधान द्वारा उत्तरोत्तर वजित किया जा रहा है। किन्तु किसी सस्कृति और तत्सम्बधित लोकोपयोगी साहित्य एव विचार धारा का अध्ययन साम्प्रदायिक अथवा धार्मिक कदापि नही कहला सकता। जब वेदो, उपनिषदो, हिन्दू धर्म शास्त्री और पुराणो का, वैदिक परम्परा के न्याय, मीमासा, साख्य वैशेषिक प्रादि षट दर्शनो का, निर्गुण सगुण सम्प्रदायो और मध्यकाल के विभिन्न सन्तमतो का तथा धर्म सुधार आन्दोलनो का, बौद्ध दर्शन और सस्कृति का, इस्लाम के इतिहास और परम्परा का, क्रिश्चियन थियोलाजी का अध्ययन अध्यापन जो कि भारत के विभिन्न विश्वविद्यालयो मे स्वीकृत है, साम्प्रदायिक धार्मिक नही समझा जाता तो फिर जैनोलाजी का, जैन सस्कृति-दर्शन, साहित्य और इतिहास का अध्ययन अध्यापन साम्प्रदायिक अथवा धार्मिक क्यो समझा जाय और भारत के सास्कृतिक अध्ययन मे उसी की उपेक्षा क्यो की जाय । अवश्य ही उसे अनिवार्य विषय न बनाकर ऐच्छिक या वैकल्पिक विषय बनाया जा सकता है। उपरोक्त जैन कालिजो, स्कूलो, छात्रालयो आदि के लिए जिन स्थानो मे ये सस्थाए स्थित होती है, उनकी स्थानीय जैन समाज से तो भरसक द्रव्य एकत्रित किया ही जाता है, देश के अन्य विभिन्न प्रान्तो और स्थानो की जैन समाज से भी पर्याप्त द्रव्य सग्रह किया जाता है । इस द्रव्य प्राप्ति के लिए समाज से जो लिखित अथवा मौखिक अपीले की जाती है उनमे सर्वाधिक बल इसी बात
SR No.010137
Book TitlePrakashit Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Jain, Jyoti Prasad Jain
PublisherJain Mitra Mandal
Publication Year1958
Total Pages347
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy