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________________ अतएव जैन मन्थ भंडार ऐसे सुसम्पन्न रत्लागार हैं जिनका धैर्यपूर्ण अनुशीलन प्राच्य विद्याविदों के लिए प्रावश्यक एव वाञ्छनीय है । एक समय था जब । साम्प्रदायिक सकीर्णता इन कोषागारों को विद्वत्समाज के लिए भी उन्मुक्त करने में बाधक होती थी, किन्तु अब परिस्थिति बदल रही है ।इलर, कीलहान कथवटे, भडारकर, पीटर्सन, वेबर, ल्यूमन, मित्रा, कीथ, दलाल, गांधी, वेलंकर, हीरालाल,कापडिया तथा अन्य विद्वानो के सतत् प्रयत्नों के फलस्वरूप ऐसी अनेक परिचयात्मक ग्रन्थ सूचियों का निर्माण हो चुका है जो पुरातन जैन साहित्य की भी विविध शाखाओ का विवरण प्रदान करती है और अनुसधान कार्य के लिये अत्युपयोगी हैं। वृह टप्पनिका, जैन ग्रन्थ नामावली, जैन शास्त्र नाममाला प्रादि ग्रन्थ कोषो द्वारा उनके निर्माताओं ने उनमे, ज्ञात अथवा उपलब्ध, जैन ग्रथों का विवरण एक ही स्थान में प्रस्तुत करने का प्रयत्न किया है जिससे सामान्य प्राथमिक पर्यवेक्षण सुगम हो जाता है। किंतु प्रो० हरिदामोदर वेलङ्कर द्वारा सपादित तथा भडारकर प्राच्य विद्यामंदिर, पूना, द्वारा प्रकाशित 'जिनरलकोष' नामक, जैन हस्त लिखित ग्रंथ सूची, इस दिशा में एक अत्यधिक सफल एवं महत्त्वपूर्ण प्रयत्न है । प्रो० वेलकर ने यह कार्य, जिसे हाथ में लेने से एक सर्व साधन सम्पन्न सस्था भी शायद हिचकिचाती, एकाकी ही प्रतीव सुन्दरता के साथ सम्पादन किया है। इसके प्रकाशन से जैन साहित्य विषयक अध्ययन को एक नवीन दृष्टि प्राप्त होने की पूर्ण प्राशा है । वीर सेवा मंदिर, देहली मे भी कई दिगम्बर जैन ग्रथ भडारो के अप्रकाशित तथा दूसरी सूचियो में सम्मिलित न किये गये, ऐसे लगभग ६००० प्रथों की एक विवरण सूची प्राय' तैयार हो चुकी है, जो कि 'जिनरत्नकोप' गत त्रुटियो की पूर्ति करने के साथ ही साथ अन्य प्रकार भी उपयोगी सिद्ध होगी। दक्षिण देश के मूडबद्री आदि स्थानों के भारो के कन्नड़ लिपि मे निबद्ध ताडपत्रीय प्रथो की एक विवरण सूची ५० के० भुजबलि शास्त्री द्वारा सम्पादित होकर भारतीय ज्ञान पीठ काशी से प्रकाशित हुई है। आमेर भडार की सूची भी जयपुर से प्रकाशित हो गई है। माफ
SR No.010137
Book TitlePrakashit Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Jain, Jyoti Prasad Jain
PublisherJain Mitra Mandal
Publication Year1958
Total Pages347
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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