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________________ (११) साहित्य के प्रकाशक भी बहधा प्रथक-प्रथक हैकि उक्त व्यवसायिक सूचीपत्रो से ही तत्सम्बन्धी आवश्यकता की अधिकाश पूर्ति हो जाती है। किन्तु भारतवर्ष के और विशेषकर हिन्दी के प्रकाशको की अवस्था इससे नितान्त भिन्न है। यहाँ विशेषज्ञता को कोई महत्त्व नही दिया जाता, प्रकाशक अनगिनत हैं किन्तु उनमे सुव्यवस्था और सगठन का सर्वथा अभाव है। उनके सूचीपत्र मात्र व्यवसायिक दृष्टि से प्रेरित मस्ती विज्ञापन बाजी के नमूने भर होते है अत. पर्याप्त दोष पूर्ण भी होते है। उनसे पुस्तक विशेष का वास्तविक, ठीक-ठीक तथा पूर्ण परिचय प्राप्त नही होता। ऐसे सब ही प्रकाशित सूचीपत्रो का प्राप्त करना भी दुष्कर है, हिन्दी की सभी प्रकाशित पुस्तको की यथार्थ जानकारी भी उनसे नही हो सकती । अतएव हिन्दी की पुस्तको की एक ऐसी सार्वजनिक सूची की आवश्यकता थी जिससे हिन्दी ग्रन्थ प्रकाशन के स्वरूप, प्रगति, इतिहास, त्रुटियो और आवश्यकतानो का ज्ञान हो सके । इस अभाव की पूर्ति अनेक अशो मे प्रयाग विश्व विद्यालय के प्रोफेसर डा० माता प्रसाद जी गुप्त द्वारा सम्पादित तथा हिन्दुस्तानी एकेडेमी, प्रयाग द्वारा हाल में ही प्रकाशित 'हिन्दी पुस्तक साहित्य' नामक ग्रन्य से हो जाती है । इस पुस्तक मे विद्वान सम्पादक ने एक विस्तृत महत्त्वपूर्ण प्रस्तावना के अतिरिक्त लगभग ५,५०० मुद्रित प्रकाशित हिन्दी पुस्तको की मक्षिप्त परिचयात्मक अनुक्रमणिका दी है, जिसमे प्राचीन अर्वाचीन, मौलिक एव टीका अनुवादादि, धार्मिक, सम्प्रदायिक (अधिकाशतः वैदिक परम्परा के ही हिन्दू समाजगत विभिन्न सम्प्रदायो से सम्बन्धित), लौकिक विविध विषयक, छोटी-बडी, महत्त्वपूर्ण तथा अति सामान्य कोटि की साधारणप्राय सर्व ही हिन्दी सस्कृत पुस्तके मम्मिलित है। स्कूली पाठ्यक्रम की साधारण पुस्तके, पारमी थ्येट र कम्पनियो में खेले जाने वाले सस्ते नाटक, सिनेमा के गायन आदि की पुस्तके, पुराने ढग के साग, ख्याल, नौट की, आल्हा, आदि की पुस्तके तथा फुटकर वा अज्ञात ट्रैक्ट आदि छोड दिये गये है । साथ मे युगविभाजनगत विषयानुसार पुस्तकानुक्रमणिका तथा लेखकानुक्रमणिका से पुस्तक की उपयोगिता और अधिक बढ़ गई है।
SR No.010137
Book TitlePrakashit Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Jain, Jyoti Prasad Jain
PublisherJain Mitra Mandal
Publication Year1958
Total Pages347
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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