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________________ ( ७६ ) जीव दया मूलक सिद्धान्तो का उपदेश दिया, जिनमे सम्राट प्रियदर्शिन ने अपने स्मरणीय अभिलेख खुदवाये, जिनमे सैकड़ों कवियों ने जिनमें से कि हालकी सतसई और स्वयंभू के निर्देशो द्वारा हमें केवल कुछ एक के ही नाम प्राप्त हुए है - लोक जीवन के विविध अगोके सम्बध में प्रल्हाद पूर्णगान किया, जिनमे कालिदासके स्त्री पात्रोने अपने पत्र लिखे, वाक्पति, प्रवरसेन, उद्योतन, हरिभद्र, राजशेखर, स्वयम्, पुष्पदत. गुणचन्द्र, रामपाणिवाद तथा अन्य विभूतियोने अपनी मनोहारी गद्य-पद्य रचनाएं की, जोइन्दु तथा कान्ह जैसे सन्तो ने अपने रहस्यवादी विचारो की अभिव्यजना की, जिनमें कि राजपूत चरणों के वीरतापूर्ण गीत आर्यावर्त के चारो कोनो में गूज उठे और जिनकी कि गोद मे वे आधुनिक भारतीय लोक भाषाए जन्मी और पनपी कि जिन्हे समृद्ध करने के लिए हम आज प्रयत्नशील है तथा जिनपर हमे इतना गर्व है-- भारतीय संस्कृति तथा सभ्यता को समझाने के लिए उनकी उपेक्षा नही की जा सकती । ये प्राकृत और पश भाषा महस्त्रो वर्ष पर्यन्त सार्वदेशिक और और सार्वजनीन रही, पाय सर्व ही प्रान्तीय भाषाओ को, यहा तक कि द्रविड वर्ग की कन्नडी आदि भाषाओ को भी इन्होंने पर्याप्त रूप में प्रभावित किया । और सर्वाधिक आश्चर्य की बात तो यह है कि विभिन्न देशीय प्राकृत और अपभ्रंश भाषा मे आधुनिक प्रान्तीय भाषाओ की भाति कोई भेद पक अन्तर ही न था । उत्तर दक्षिण पूर्व पश्चिम सवत्र उनका प्राय एकसा प्रयोग होता था, साहित्य मे भी और बोलचाल मे भी । उनके पैशाची, शौरसेनी, गौडी, महाराष्ट्री आदि भेद वास्तव मे क्षेत्रपरक नही थे। जैसा कि डा० उपाध्याय ने स्पष्ट कहा है, यह कथन करना कि महाराष्ट्री प्राकृत के ग्रन्थ महाराष्ट्र मे ही लिखे गये अथवा जैन महाराष्ट्री का प्रयोग महाराष्ट्र के जैनो ने किया और शौरसेनी का शूरसेन देश के जैनो ने, नितान्त भ्रमपूर्ण है । यही बात तथा कथित विभिन्न अपभ्रशो के विषय मे है । इन भाषाओ का प्रदेश विशेष के साथ कोई सम्बध ही न था । वे तो चिरकाल पर्यन्त भारत वर्ष के सर्व साधारण की भाषाए रही थी, अन्तर्प्रान्तीय थी और सच्चे अर्थों मे अपने-अपने समय मे इस देश की राष्ट्रीयलोक भाषाए थी । ल
SR No.010137
Book TitlePrakashit Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Jain, Jyoti Prasad Jain
PublisherJain Mitra Mandal
Publication Year1958
Total Pages347
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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