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________________ ( ४ ) शान्त रम प्रधान रहा, तथापि प्राय प्रत्येक लोकोपयोगी एव समयापयुक्त विषय पर इन विद्वानो ने अपनी प्रमाणीक लेखनी का चमत्कार दिखलाया । धर्मशास्त्र, तत्व ज्ञान, आचार शास्त्र, पुराण चारित्र, पूजा प्रतिष्ठा पाठ, स्तुति स्तोत्र आदि विविध धार्मिक साहित्य के अतिरिक्त काव्य, नाटक, चम्पू, कथा साहित्य, जीवन चरित्र, ग्रात्म चरित्र, इतिहास, राजनीति, नीत्योपदेश, समाज शास्त्र, दर्शन, अध्यात्म, न्याय, तर्क, छन्द, व्याकरण, अलकार, काव्य शास्त्र, कोष, भाषाविज्ञान, मन्त्र शास्त्र, ज्योतिष, सामुद्रिक, वैद्यक, पशु चिकित्सा, स्थापत्य मूर्तकला एवं वास्तु विज्ञान, गणित, सामान्य विज्ञान, रसायन, भौतिक, जन्तु विज्ञान, भूगोल, खगोल, रत्न परीक्षा, भ्रमरण वृत्तान्त, स्थान परिचय इत्यादि प्राय सब ही विषयो पर ग्रन्थ रचना की । इन बातो का विस्तृत परिचयात्मक विवेचन साहित्यिक इतिहास का विषय है । तथापि जैन माहित्य की विपुलता, विविधता और महत्व का बहुत कुछ अनुमान केन्द्रिय, प्रान्तीय तथा रियासती सरकारो द्वारा प्रकाशित हस्तलिखित ग्रन्थो की खोज सम्बधी विभिन्न विवरण पत्रिका, म्यूजियम रिपोर्टों, पुरातन पुस्तक भडारो तथा सार्वजनिक एव व्यक्तिगत मग्रहालयो के सूची पत्रो, विभिन्न स्थानीय दिगम्बर श्वेताम्बर जैन ग्रथ भण्डारो की उपलब्ध सूचियो तथा जैन पत्र पत्रिकाओ मे प्रकाशित तन्मम्बधी फुटकर लेखादिको से हो जाता है । इस प्रकार ऐसे बीमियो सहस्त्र जैन ग्रन्थो का पता चलता है जो उपलब्ध है। जिसपर अनेक प्राचीन जैन ग्रन्थ भडार, विशेषकर दिगम्बर सम्प्रदाय के, अभी तक बन्द ही पडे हुए है । उनमे कितने, कैसे और क्या-क्या साहित्य रत्न छिपे पडे है यह कहा भी नही जा सकता । जो भडार खुल गये है उनमें से भी कितनों की ही कोई व्यवस्थित सूची निर्मित एव प्रकाशित नही हो पाई है । वैसे तो प्राय प्रत्येक नगर, कस्बे और ग्राम मे जहा जैनियो की थोडी बहुत भी आबादी है तथा देश भर मे यत्र तत्र फैले हुए बहुसख्यक जैन तीर्थो मे से प्रत्येक पर एक वा अधिक जिन मन्दिर प्राय अवश्य ही विद्यमान है और प्राय प्रत्येक जिनालय अथवा उपाश्रय आदि मे छोटा ast एक शास्त्र भडार भी अवश्य ही होता है जिसमे कि ताडपत्रीय, भोजपत्रीय अथवा कागज आदि अल्पाधिक प्राचीन हस्तलिखित ग्रथो का ही सग्रह प्राय.
SR No.010137
Book TitlePrakashit Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Jain, Jyoti Prasad Jain
PublisherJain Mitra Mandal
Publication Year1958
Total Pages347
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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