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( २६७ ) अहिंसा परचार-अर्थात् गोश्तखोरों के ऐतराजात का दन्दा शिकत जवाब मे. बाबू परमानंद जैन म. मा० नन्दलाल, पृ० ७२, प्रा० मन्बम।
अहिंसा याने तमाम जानवरों से बिरादराना मुहब्बत-प्र० जीव दया विभाग; जैन महा मंडल लखनऊ, व० १६१५ ।
आदाबे रियाजत याने बाइस परीसह-ले० बा० भोलानाथ दरखयों, ३० जैन मित्र मंडल देहली, पृ० २४, व० १९२९, मा. अब्बल ।
आदीश्वर भगवान श्री रिखवदेव जी महाराज का मुख्तसिर जीवन चरित्र --अनु० गोपी चन्द जैनी 'भानु', प्रमात्मानंद जैन ,क्ट सोसाइटी अम्बाला पृ० ६६, २० १६१६ ।
श्रावदार मोती-ले० शिव वरतलाल, प्र. नन्दकिशोर 'अवधूत' नाहौर, पृ० १८६, २० १९२५, प्रा० अब्बल ।
आईनए अफाल दयानन्द (अलमारुफ तर्जुमा दया नद छल कपट दर्पण)-ले० पं. जीया लाल चौधरी, प्र. जोतिषरत्न पवित्र औषधानय फर्रुख नगर; पृ०२०८, २० १६२५, प्रा० अब्बल।
आईनए हमदरदी-ले० ला० पारसदास, प्र० खुद देहली, पृ० ३३४, १० १६१६, प्रा० अब्बल ।
आरजुए खैर बाद (मन्जूम)-(मेरी भावना का तर्जुमा)-ले० बा. भोलानाथ मुख्तार, प्र. जैन मित्र मडल देहली, पृ० १६; व० १९२५ ।
इत्तहादुल्मुखालफीन-ले. चम्पराय जैन बैरिस्टर, पृ० ३६४; व० १६२२ मा० अब्बल।
इन्सानी गिजा-प्र. जीवदया विभाग जैन महा मडन लखनऊ, व. १६१५।
ईश्वर विचार-ले. नत्थन लाल गुड़गांवे वाले; प्र० खुद देहली, पृ० ४८; क. १९२६ ।
एडरेस-बा• बाल चन्द्र जैन एडवोकेट; रोहतक; सन् १९३१ ई० । । क्या ईश्वर सालिक है-(बतर्ज लावनी)-ले• बा. जोती परशाद,