SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 61
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ३६ ) सारादि के भी प्राधार भूत प्रति प्राचीन एवं विशालकाय ग्रन्थ धवलादि हैं जिनकी एक मात्र ताडपत्रीय प्रति मैसूर राज्य के अन्तर्गत मूडबद्री के प्राचीन शास्त्र भण्डार मे सुरक्षित है । अतएव उक्त राव जी ने उन महान श्रागम ग्रन्थों के उद्धार का प्रयत्न चालू कर दिया। इस कार्य में उन्हे उन्ही जैसे धर्म प्राण समाज सेवी धनिक धारा निवासी स्व० बा० देवकुमार जी तथा बम्बई के दानवीर सेठ माणिकचन्द्र जी जोहरी जे० पी० आदि सज्जनो का बहुमूल्य सहयोग प्राप्त हुआ । इन महानुभावों के २५-३० वर्ष पर्यन्त सतत् उद्योग करते रहने के फलस्वरूप धवलादि ग्रन्थो की प्रतिलिपिया मूडबद्री के भण्डार की सीमा के बाहर निकल आई । बा० देवकुमार जी ने धारा मे जैन सिद्धान्त भवन (दी सेन्ट्रल जैना मोरियटल लाईब्रेरी) नामक महत्त्वपूर्ण जैन पुस्तकालय एव सग्रहालय की स्थापना करके साहित्यिक शोध खोज एव ग्रन्थ प्रकाशन के. कार्य को और भी प्रगति दी । दान वीर सेठ माणिकचन्द के उद्योग से अखिलभारतीय जैनो के विवरण से युक्त एक जैन डायरेक्टरी प्रकाशित हुई । माणिकचन्द्र दि० जैन ग्रन्थ माला तथा माणिकचन्द्र दि० जैन परीक्षा बोर्ड बम्बई की स्थापना का श्रेय भी इन्हें ही है, और दि० जैन महासभा की बम्बई प्रान्तीय शाखा के प्रमुख कार्यकर्त्ता भी यही थे । साहित्य प्रचार और छापे के भारी समर्थक बाल ब्रह्मचारी प० पन्नालाल जी बाकलीवाल ने काशी मे दिगम्बर जैन सिद्धान्त प्रकाशनी सस्था की स्थापना की और उसके अपने ही प्रेस मे जयपुर आदि मे हाथ से बने शुद्ध स्वदेशी कागज पर शास्त्राकार खुले पन्नो मे अपने यहाँ ही तैयार की गई स्याही से सवर्ण कर्मचारियो की सहायता द्वारा धार्मिक ग्रन्थो का मुद्रण प्रकाशन प्रारम्भ किया । इस योजना द्वारा उन्होने स्थिति पालक दल के विरोध की तीव्रता को अत्यन्त शिथिल कर दिया। काशी में थोड़े ही काल रहने के उपरान्त यह सस्था कलकत्ते को स्थानान्तरित करदी गई। संस्था it वहां चालू करके बाकलीवाल जी बम्बई चले गये जहाँ उन्होंने देशहितैशी पुस्तकालय' नामक एक सार्वजनिक हिन्दी प्रकाशन संस्था 1
SR No.010137
Book TitlePrakashit Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Jain, Jyoti Prasad Jain
PublisherJain Mitra Mandal
Publication Year1958
Total Pages347
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy