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________________ (४१) प्रत्र प्रचालन का प्रारम्भ हमा; मग इस मामा-हिन्दी भानोमान का प्रवर्तन एवं प्रधान नेतुन लिया राजा शिवप्रसाद सितारे हिन्द सीमाई०६०ने । सबा विद्याप्रसाद जीबन सकल से और सजनेम शिक्षा विभाग के एक स्त्र प्रदाधिकारी थे। ये हिन्दी के भारी समर्थक, प्रचारक और पक्षपाती थे। उर्दू और ममेषी के पक्षमातियो के तीव्र विरोध को चुनौती देकर उन्होंने हिन्दी की मकान मस्स से स्था की और शिक्षा विभाग में उसकी ससा को अक्षुण्ण बना दिया। उन्होने हिन्दी मे शिक्षा सम्बन्धी एक लोकोपयोगी किलनी ही पुस्तके स्वय लिखी तथा दूसरो से लिखाई । उनकी प्रसिद्ध पुस्तक 'इतिहास तिमिर नाशक' की कोई दिन बड़ी ख्याति रही । एक प्रकार से प्राधुनिक खड़ी कोली के साप जन्मदाता ही समझे जाते हैं । स्वय भारतेन्दु बा० हरिश्चन्द्र इन्हे अपना गुरु मानते थे, और उन्होने अपना 'मुद्राराक्षस नाटक इन्हे ही समर्पित किया था। इलाहबाद निवासी, खण्डेलवाल जैन बा० रतनचन्द्र बकील भी हिन्दी के इस युग के अच्छे लेखक थे। उनका 'नूतन चरित्र' इडियन प्रेस, प्रयाग ने प्रकाशित किया था। न्याय सभा नाटक,भ्रमजाल नाटक, चातुर्थार्णव,वीरनारायण, इन्दिरा, हिन्दी उर्दू नाटक प्रादि उनकी कई अन्य रचनायें भी, जिनमे से कुछ मौलिक कुछ अंग्रेजी आदि से अनूदित तथा कुछ प्राधार लेकर लिखी गई थी, मुद्रित प्रकाशित हुई। पारा के जमीदार अग्रवाल जैती बार जैनेन्द्र किशोर, पारा की नागरी प्रजारिणी सभा तथा प्रारणेत समाल्मेन्नक सभा के उत्साही कार्यकर्ता थे। मे हिन्दी के सबेखक मोर सुकवि थे। उनके द्वारा रचित खगोल विज्ञान, कमलाबारी, मनोरमा रूपन्यास प्रादि कई पुस्तके तथा जैन कालो के आधार के लिखे हुए सोसांसती प्रति कई नाटक प्रहसनादि को थे। इन्होले हिन्दी बैल अवह कर भी कई वर्ष सम्मान किया और पाने की बारी हितैषिणी पत्रिका को इतका जीवन चरित्र की प्रायशिल इमा। भी जाना जानामि जैन और जयपुर के निकासी के । ये साल
SR No.010137
Book TitlePrakashit Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Jain, Jyoti Prasad Jain
PublisherJain Mitra Mandal
Publication Year1958
Total Pages347
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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