Book Title: Vandan Pratikramanavchuri
Author(s): Kanchanvijay, Kshemankarsagar
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

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Page 15
________________ मुख बन्ध आवश्यकने करनारा गणधर भगवंतोने नमस्कार करीने जणावीए छीए के श्रमण भगवान महावीर महाराज- शासन अगर कोई पण तीर्थंकरन शासन-तीर्थ दिवसे ज स्थपाय छे. भरत तथा ऐरवतनी अंदर पहेला अने छेल्ला तीर्थकरना तीर्थमां सप्रतिक्रमण धर्म छे. अने जातीर्थ दिवसे स्थपातुं होवाथी प्रथम दैवसिक प्रतिक्रमण करवान आवे छे. तेवी रीते पांचे पण प्रतिक्रमणो ते ते समये करवानां आवे छे. ___ आ अवचूरि वन्दनप्रतिक्रमण नामनी छे. जेमां श्रावकोने अंगे वन्दन अने प्रतिक्रमणनी वात आवे छे. जो के केटलाक सूत्रो तो जे श्रमण भगवंतोमा होय छे ते ज छे. परंतु आखो ग्रन्थ श्रावकोना सूत्रोने अनुकूल तेथी तेम कहेवाय तेमां हरकत नथी. आ ग्रन्थमां कथा सहितनी टीका नथीपरंतु प.पू. आचार्यप्रवर श्रीदेवेन्द्रसूरीश्वरजी महाराजे करेल वन्दारुवृत्ति तथा प.पू. आचार्य भगवान् श्रीरत्नशेखरसूरीश्वरजी महाराजनी करेली अर्थदीपिका जे छ तेमांथी कथाओ वगेरे छोडीने अवचूरि रूप जे टीकानो भाग ते आ ग्रन्थमा लेवामां आवेलो छे. तेथी आने अवचूरि कहेवाय छे. __वळी आना कर्ताए कोई जगाए पोताना नामनो उल्लेख कर्यो नथी. तेथी आ अवचूरि अनिर्दिष्ट नामवाळी छे, प्रतिक्रमणसूत्रनी वृत्ति प. पू. आचार्य भगवान् रत्नशेखरसूरीश्वरजी महाराजनी अर्थदीपिकामांनी होवाथी तेने थोडं अनुसरवापणुं गणीने “रत्नशेखरवृत्त्यनुगता तु" एम लखवू पड्युं छे. परंतु एक बात तो लेवी पडशे के अवचूरिकारे पत्र २७ मा हरिवल मच्छीनी कथानी भलामण करतां 'परम गुरु' तरीके प. पू. आचार्य श्रीरत्नशेखरसूरीश्वरजीने जणाव्या छे. तेथी शुं आ तेओश्रीना शिष्य वगेरे हशे अम मनाय ! ___ आने पडावश्यकवृत्ति कहेवामां पण कई हरकत देखाती नथी. कारण के अवचूरिकारे षडावश्यकवृत्ति अवो प्रयोग कयों छे. वन्दन | अने षडावश्यकना सूत्रोने जणावतो आ ग्रन्थ वन्दनप्रतिक्रमण अवचूरि नामनो छे. १ आ वातना स्पष्टीकरण माटे जुओ उपोद्धात. Jain Educa t ional For Private 8 Personal Use Only www.jainelibrary.org

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