Book Title: Vandan Pratikramanavchuri
Author(s): Kanchanvijay, Kshemankarsagar
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
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वन्दनप्रतिक्रमणावचूरिः परि०१
अवचूरिकृतानि सूत्राणि
॥५०॥
| वाणिजं चेव य दंतलक्खरसकेसविसविसयं ॥ २२॥ एवं खु जंतपीलणकम्म निल्लंछणं च दवदाणं । सरदहतलायसोसं, असईपोसं च वजिज्जा
॥ २३ ॥ सस्थग्गिमुसलजंतगतणकट्टे मंतमूलभेसजे । दिन्ने दवाविए वा, पडिकमे देसि सवं ॥ २४ ॥ हाणुवट्टणवण्णगविलेवणे सह| रूबरसगंधे । वत्थासणआभरणे, पडिकमे देसि सवं ॥ २५ ॥ कंदप्पे कुकुइए, मोहरि अहिगरण भोगअइरित्ते। दंडमि अणट्ठाए, तइअमि गुणश्वर निंदे ॥ २६ ॥ तिविहे दुप्पणिहाणे, अणवट्ठाणे तहा सइविहूणे । सामाइअ वितहकए, पढमे सिक्खावए निंदे ॥ २७॥ आणवणे पेसवणे, सद्दे रूवे अ पुग्गलक्खेवे । देसावगासिमी, बीए सिक्खावए निंदे ॥ २८ ॥ संथारुच्चारविही पमाय तह चेव भोयणाभोए । | पोसह विहि विवरीए, तइए सिक्खावए निदे ॥ २९ ॥ सञ्चित्ते निक्खिवणे, पिहिणे ववश्स मच्छरे चेव । कालाइकमदाणे, चउत्थे सिक्खावए निंदे ॥३०॥ सुहिएसु य दुहिएसु य जा मे अस्संजएसु अणुकंपा। रागेण व दोसेण व, तं निदे तं च गरिहामि ॥३१।। साहूसु संविभागो, न कओ तवचरणकरणजुत्तेसुं । संते फासुयदाणे, तं निंदे तं च गरिहामि ।। ३२ ॥ इहलोए परलोए, जीवियमरणे य आससपओगे । | पंचविहो अइयारो, मा मज्झ हुज मरणंते ॥ ३३ ॥ कायेण काइयस्सा, पडिक्कमे वाइयस्स वायाए । मणप्ता माणसियस्सा, सवस्स वयाइयारस्स ॥ ३४ ॥ वंदणवयसिक्खागारवेसु सण्णाकसायदंडेसुं । गुत्तीसु य समिईसु य जो अइयारो अ तं निंदे ॥ ३५ ॥ सम्महिट्ठी जीवो, जइवि हु पावं समायरइ किंचि । अप्पो सि होइ बन्धो, जेण न निद्धंधसं कुणइ ॥ ३६ ॥ तंपि हु सपडिक्कमणं, सप्परियावं सउत्तरगुणं च । खिप्पं उवसामेई, वाहिव सुसिक्खिओ विज्जो ॥ ३७ ॥ जहा विसं कुट्ठगय, मंतमूलविसारया । विज्जा हणंति
मंतेहिं, तो तं हवइ निविसं ॥ ३८ ॥ एवं अट्ठविहं कम्म, रागदोससमजियं । आलोयंतो य निंदतो, खिप्पं हणइ सुसावओ ॥ ३९ ॥ *कयपावोऽवि मणूसो, आलोइयनिंदिय गुरुसगासे । होइ अइरेगलहुओ ओहरियभरुच भारवहो ॥ ४० ॥ आवस्सएण एएण सावओ
小本本本系名余尔亦在余本不亦亦宗杰而浓杰尔森杂杂杂杂杂完
॥५०॥
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