Book Title: Vandan Pratikramanavchuri
Author(s): Kanchanvijay, Kshemankarsagar
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

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Page 123
________________ साक्षिपाठः तण्हाविच्छेएणं ततो चरित्तधम्मो तत्तमिणं सारमिणं | तत्थ य भब्भासे गिरी तवसंजमजोगेसु तह उवदंसनिर्म तामलि तण तवं तित्तीसं च पयाई तिन्नि तिभा तिमि तिलमल्ली तिलकुट्टी तिब्बतबं तबमाणो तिब्वयरे य पोसे तेणि पहिणि तेसिपि अ जणणीओ थिरिकरणा पुण थेरो थूला सुहमा जीवा पत्रांकः साक्षिपाठः १९ दब्बे भावे बंदण १९ दहिए विगइगयाई ४१ दानं यत् प्रथमोप ४५ दिट्ठमदिटुं च तहा ११ दिटुंतस्सो दिद्विपडिलेहणेगा २४ दिवसे २ लक्वं ५ दीहकालरयं १६ दुओणय महाजार्य १८ दुद्धं दहि घय तिलं ३६ देवेन्दरायगिहवइ २७ देसंमि अ पासत्यो १२ देसावगासिय ४५ दो चेव नमुकारे " द्वे वाससी प्रवर २६ घणसंचओम बिडलो पत्रांकः साक्षिपाठः " नमस्कारेण विबोधः १८ नवकारपोरसीए ३९ नवकारेण जद्दण्णा १२ नवकारेण विबोहो ४१ नवणीमोगाहिमए ११ न सत्यमपि भाषेत ३६ निविभपावकम्म निरवजाहारेणं ११ निम्बाणसाहए जोए १८ नूर्ण जिणाण धम्मोवि १३ नो सरसि कहं १ पक्कघयं घयकिट्टी ३६ पक्खिय तिनि सयाई १६ पञ्चक्खाणस्स फलं ३३ पञ्चक्खाणं जाणइ २१ पञ्चक्खाणं तु सम्व पत्रांकः साक्षिपाठः पञ्चक्खाणमि कए १६ पडिक्कमणं पडियरणा पडिक्कमणे सज्झाए ४५ पढमं नाणं तओ १६ पढमे लब्भइ एगो २८ पनरसकोडिसयाई पंच चउरो अमिरगहे पंचविहं भायारं पायच्छित्तस्स ठाणाई पायाहिणेण १३ पासस्थाइ वंदमा १८ पासवाईएसुं १९ पासत्थो ओसण्णो १९ पिंडस्स जा विसोही 10 पिण्डविसोहि १८ पुरओ पक्खा सन्ने Jain Educati o nal For Private & Personal Use Only wiww.jainelibrary.org

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