Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 04
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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उत्तराध्ययनस्त्र मूलम्-समएवि संतई पप्प, एवमेव वियाहिए।
आएसं पंप साईएं, सपर्जवलिए वि य ॥ ९ ॥ छाया-सनयोऽपि सन्तति प्राप्य. एवमेव व्याख्यातः।
__आदेशं प्राप्य सादिकः, सपर्यसितः अपि च ॥९॥ टीका-'समएवि' इत्यादि
समयः अपि, सन्तति अपरापरोत्रत्तिरूपपवाहात्मिका, प्राप्य आश्रित्य, एव मेव-अनावपयवसितत्वलक्षणेनैव प्रकारेण । व्याख्यातः प्रचपितः। तथा आदेशविशेष घट्यादिरूपं तु पाप्य आश्रित्य, सादिकः-आदियुक्तः, तथा-सपर्यवसितः अन्तसहितोऽपि व्याख्यात इति । च शब्दस्त्वर्थे ।।९।। ___ यथा रूपिद्रव्याणां भावतो वर्णादयः पर्याया ज्ञातुं शक्यन्ते, न तद्वद् धर्मा
अन्वयार्थ (समएवि-समयः अपि ) समयल्प काल भी (संतई पप्प-सन्ततिं प्राप्य) अपरापरोत्पत्तिम सन्तति को आश्रित करके (एवमेव वियाहिए-एवमेव व्याख्यानः ) अनादि अनन्तरूप से कहा गया है । तथा (आएसं पप्प-आदेशं प्राप्य ) घडी पल आदि रूप विशेष की अपेक्षा करके (साइए सपजवसिए वियाहिए-सादिकः सपर्यवसितः व्याख्यानः ) आदि और अन्त सहित भी कहा गया है।
भावार्थ-समयल्पकाल अपरापरक्षणोत्पत्ति के प्रवाह की अपेक्षा अनादि अनन्त कहा गया है। तथा विशेष की-अपेक्षा से सादि सान्त कहा गया है ।। ९॥ जैसे रूपी द्रव्यों के वर्गादिक पर्याय भाव की अपेक्षा जाने जाते हैं
स-पयार्थ-समएवि-समय अपि समय३५ ४ प संतई पप्प-सन्तति प्राप्य अ५२।५।त्पत्ति३५ मततिने आश्रित प्रशन एवनेव वियाहिए-एवमेव व्याख्यात सना अनत३५धी जाये। छे. तथा आएसं पप्प-आदेशं प्राप्य घडी ५ माहि३५ विशेषनी अपेक्षा ४रीन सोइए सपज्जवसिए वियाहिए -सादिक. सपर्यवसिक व्याख्यात सामने मत सहित पए पाये है.
ભાવાર્થ –સમયરૂપ કળ અપરાપરણત્પત્તિના પ્રવાહની અપેક્ષાથી અનાદિ અનંત કહેવામાં આવેલ છે તથા વિશેષની અપેક્ષાથી સાદિસાન सेवामां आवे छे. ॥६॥
રૂપી દ્રવ્યનો વદિક પર્યાય ભાવની અપેક્ષા જાણી શકાય છે.