Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 04
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 995
________________ प्रियदर्शिनी टीका अ० २९ अवतरणिका हे जम्बूः ! काश्यपेन काश्यपगोत्रजेन श्रमणेन-तपस्विना, भगवता महा रेण श्री वर्धमानस्वामिना, इह-अस्मिन् श्री उत्तराध्ययनसूत्राख्ये प्रवचने खलु निश्चयेन सम्यक्त्वपराक्रम सम्यक्त्वस्य पराक्रमः सम्यक्त्वजनितमुत्तरोत्तरगुण प्राप्त्या कर्मक्षपणसामर्थ्य वयते यस्मिस्तत् सम्यक्त्वपराक्रम नाम सम्यक्त्वपर क्रमनाम्ना प्रसिद्धमेकोनत्रिंशत्तमम् अध्ययनं प्रवेदितम् आख्यातम् । 'जं सम सदहित्ता' यत् खलु सम्यक श्रद्धाय=' भगवता यद् वर्णितं तत्सत्य'-र्माि विश्वासं कृत्वा, अत एव 'प्रतीत्य' 'इदमित्थमेवे 'ति विशेषतो निश्चित्य, कल्या कारकत्वेन हृयवधार्येति यावत् , रोचयित्वा-भगवदुक्तार्थमनुष्ठातुं तलवचनमध्ये चाभिलष्य, स्पृष्ट्वा योगत्रयेण स्पर्श कृत्या, तत्र मनसा सूत्रार्थोभयमननेन, वचर वीरेण इह खलु सम्यक्त्व पराक्रम नाम अध्ययनं प्रवेदितम् ) काश्यपगो में उत्पन्न हुए, निग्रन्थ, भगवान् श्री वर्तमान स्वामीने इस उत्तराध्य नामक प्रवचनमें निश्चयसे सम्यक्त्वपराक्रम नामका यह अध्ययन कह है । इस अध्ययनमें सम्यक्त्वसे उत्पन्न होनेवाले उत्तरोत्तर गुणोंव प्राप्तिसे कर्मक्षयके योग्य सामर्थका वर्णन है । (जं सम्म सदहित्ता यत् सम्यक श्रदाय) जिलको सम्यक रीतिसे श्रद्धाका विषय कर अर्थात् 'भगवान् ने जो वर्णित किया है वह सत्य है' इस प्रकार विश्वार करके तथा (पत्तिया-प्रतीत्य ) ' यह इसी प्रकार है अन्य प्रकार नह है, इसीसे जीवोंका कल्याण हो सकता है अतः यही कल्याणकारी है ऐसा हृदयमें निश्चय करके (रोयइत्ता-रोचयित्वा) भगवदुक्त अर्थक अनुष्ठित करनेके लिये उनके प्रवचनको पालनेकी अभिलापारूप सः करके, (फासित्ता-स्पृष्ट्वा ) योगत्रयसे स्पर्श करके-मनसे सूत्र, अर्थ ए काश्यपेन श्रमणेन भगवता महावीरेण इह खलु सम्यक्त्वपराक्रमं नाम अध्ययन વેરિતમ્ કાશ્યપ ગેત્રમાં ઉત્પન્ન થયેલા, નિગ્રંથ ભગવાન શ્રી વર્ધમાનસ્વામીએ આ ઉત્તરાધ્યયન નામના પ્રવચનમાં નિશ્ચયથી સમ્યકત્વ પરાક્રમ નામનું આ અધ્યયન કહેલ છે. આ અધ્યયનમાં સમ્યક્ત્વથી ઉત્પન્ન થનારા ઉત્તરોત્તર ગુણોની પ્રાપ્તિથી કર્મક્ષપણના ચગ્ય સામર્થ્યનું વર્ણન કરેલ છે. જેને લ सम्मं सहहित्ता-यत् सम्यक् श्रद्धाय ने सभ्य तथा श्रद्धान विषय शन અર્થાત ભગવાને જે વર્ણન કરેલ છે તે સત્ય છે. આ પ્રમાણે વિશ્વાસ કરીને, तथा पत्तिया-प्रतीत्य “२५ मे प्रभारी छ, अन्य प्रारथी नथी, माना જીવોનું કલ્યાણ થઈ શકે છે, આથી એ કલ્યાણકારી છે.” એવો હૃદયમાં श्वय ४शन रोयइत्ता-रोचयित्वा सपत मथने मनुडित ४२वा भाटे मना अपयनने पापानी अनिता३५ ३२४शन फासिचा-स्पृहा गयथी २५श

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