Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 04
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 981
________________ प्रियदर्शिनी टीका अ० २८ सम्यक्त्वस्याष्टविधाचारवर्णनम् १७५ " निष्काङ्क्षितं२, ' निस्संकिय' 'निक्कंखिय' इत्युभयत्रानुस्वारलोपः आर्पवात् । निर्विचिकित्स= विचिकित्सा फलं प्रति संदेहः, किमेतावतामहतस्तप-संयमाराधन क्लेशस्य फलं स्यान्नवा' इति तदभावो निर्विचिकित्सम्, तथा अमूढदृष्टि: = अमूढा - मोहरहिता कुतीर्थिदर्शनं बहुजनमान्यमस्ति, तस्मादस्मद्दर्शनं निन्द्यमिति मोहाभावात् तादृशी दृष्टि :- अनिन्द्यं श्रद्धेयमस्मद्दर्शनमिति, बुद्धिरूपा सा च । अयमान्तरश्चतुर्विध आचारः प्रदर्शितः, अथः बाह्यमाचार माह -- 'उचवूह' इत्यादि । उपबृंहास्थिरीकरणे = उपवृंहा दर्शनादिगुणवतां प्रशसनेन तत्तद्गुणवर्धनं, स्थिरीकरणं स्वीकृतधर्मानुष्ठानं प्रति सीदतां स्थैर्यापादनं तयोर्द्वन्द्वसमासः । सर्वदेश से शंका नहीं करनी शंकितवृत्ति नहीं रखना- इसका नाम निःशंकित है १ । (निकांखिय - निष्काङ्क्षितम् ) अन्यर दर्शनों की अभिलाषारूप कांक्षा का त्याग करना निष्कांक्षित है २ । (निव्वितिमिच्छा-निर्बिचिकित्सा) फलके प्रति संदेह करना जैसे यह विचारना कि 'क्या इतनी बड़ी भारी तपस्या या संयम की आराधना करनेरूप क्लेशका फल होगा या नहीं ? - यह विचिकित्सा है । इस प्रकारकी विचिकित्सा नहीं करना यह निर्विचिकित्सा है । ३ ( असूढ दिट्ठी य - अनूढदृष्टिश्च ) मोहरहित दृष्टिका नाम अमूढ दृष्टि है । 'कुतीर्थिक दर्शन बहुजनों द्वारा मान्य है इसलिये हमारा दर्शन निंद्य है ' इसका नाम लूढ दृष्टि है । इस तरहकी दृष्टिका अभाव अर्थात् 'हमारा दर्शन अनिंद्य है अतः वह श्रद्धेय है' ऐसी - बुद्धि का होना इसका नाम असूढदृष्टि है ४ । इस प्रकार निःशंकित, निष्कां क्षित, निर्विचिकित्सा एवं अमूढदृष्टि, ये चार अन्तरंग आचार हैं । - ; સર્વ દેશમાં શંકા ન કરવી શકિત વૃત્તિ ન રાખવી. આનું નામ નિઃશકિત छे १ निक्कखिय-निष्काङ्क्षित लुहा लुहा दर्शनानी अलिसाषा३य अंक्षाना त्याग श्वो निष्ठांक्षित छे. २ निव्वितिमिच्छा - निर्विचिकित्सा इनी ममतंभां શકાશિલ થવું. જેમ એ વિચારવું કે, શું આટલી ભારે તપસ્યા અને સંયમની આરાધના કરવારૂપ કાનુ ફળ મળશે કે નહી ? આ વિચિકિત્સા છે. આ अमाहो विथिङित्सा न ४२वी से निर्विचिट्ठित्सा छे 3 अमूढदिट्ठीय- अमूढद्दष्टिश्च માહ રહિત દૃષ્ટિનું નામ અમૂઢ દૃષ્ટિ છે. “કુતિર્થીક દન બહુજના દ્વારા માન્ય છે. આ કારણે અમારૂ દર્શન નિંદ્ય છે' આનું નામ સૂષ્ટિ છે, આ પ્રકારની દૃષ્ટિના અભાવ અર્થાત “ અમારૂં દન અનિંદ્ય છે આથી તે શ્રદ્ધા વાળુ છે આવી ખુદ્ધિનું થવું તેનું નામ અમૂઢદૃષ્ટિ છે. ૪ આ પ્રમાણે નિઃશકિત, નિષ્કાંક્ષિત, નિર્વિચિકિત્સા, અને અમૂઢદૃષ્ટિ, એ ચાર અન્તર્ગ "

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