Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 04
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
View full book text
________________
७६८
उत्तराध्ययनसूत्रे मूलम्-वेण्णओ लोहिए जे उ, भइए से उ गंधओ।
रसओ फांसओ चैवं, भैइए संठाणओ वि य ॥२५॥ छाया-वर्णतो लोहितो यस्तु, भाज्यःस तु गन्धतः ।
रसत. स्पर्शतश्चैव, भाज्या संस्थानतोऽपिच ॥ २५ ॥ टीका-'वण्णओ लोहिए जे उ' इत्यादि
व्याख्या प्राग्वत् । लोहितस्याऽपि प्राग्वद्विशतिर्भङ्गाभवतीति भावः ॥२५॥ वर्णकी अपेक्षा नीला होता है (से-सः) वह (गंधओ-गंधतः) गन्धकी अपेक्षासे (भइए-भाज्यः) भाज्य होता है। इसी तरह वह (रसओ फासओ संठाणओ भइए भवे-रसतः स्पर्शतः संस्थानतश्च भाज्यः भवति) रसकी अपेक्षा, स्पर्शकी अपेक्षा एवं संस्थानकी अपेक्षा भी भाज्य जानना चाहिये। अर्थात् ऐसा कोई नियम नहीं है कि जो पौद्गलिक स्कन्ध नील वर्णवाला हो वह नियमतः नियमित गंध रस स्पर्श एवं संस्थान युक्त हो । अतः इस वर्णके साथ भी गंध रस स्पर्श एवं संस्थान-भाज्य-विकल्प्य कहे गये हैं। इस तरह यह वर्ण भी वीस भंगोंको प्राप्त करता है ॥२४॥ ___अन्वयार्थ (जे-यः) जो पौद्गलिक स्कन्ध (वण्णओ-वर्णतः) वर्णकी अपेक्षा (लोहिए-लोहितः) लोहित लाल होता है (से-सः) वह (गंधओ-गंधतः) गंधकी अपेक्षा (भइए-भाज्यः) भाज्य होता है। इसी मी ना हाय छे से-सः गंधओ-गंधतः गधनी अपेक्षाथी भइए-भाज्यः
न्याय छे. या प्रमाणे त रसओ फासओ संठाणओ भइए भवे-रसतः स्पर्शतः संस्थानतश्च भाज्यः भवति २सनी अपेक्षा २५शनी मपेक्षा अन संस्थाननी અપેક્ષા પણ ભાજ્ય જાણવા જોઈએ. અર્થાત્ એ કેઈ નિયમ નથી કે, જે પોગલિક સ્કંધ નીલ રંગવાળો હોય તે નિયમતઃ નિયમિત ગંધ, રસ, સ્પર્શ અને સંસ્થાન યુક્ત હોય આથી આ વર્ણની સાથે પણ ગધ, રસ, સ્પર્શ અને સંસ્થાન ભાજ્ય-વિક બતાવાયેલ છે. આ પ્રમાણે આ વણે પણ વિસ ભંગોને પ્રાપ્ત કરે છે. મારા
न्मक्यार्थ-जे-यः रे पोशात २४५ वण्णओ-वर्णतः पनी अपेक्षा लोहिए-लोहितः साहित-ele डाय छे से-सः ते गंधओ-गंधतः धनी अपेक्षा भदए-भाज्यः मान्य होय छे, २मा शत त रसओ फासओ संठाणओ भइए-रसतः . . . संस्थानत. भाज्यः २सनी अपेक्षा, २५शनी अपेक्षा ५५] alari onा