Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 04
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 962
________________ उत्तराध्ययनसूत्रे __" से य समत्ते पसत्थसम्मत्तमोहणीयकम्माणु वेयणोवसमखयसमुत्थे पसमसंवेगाइलिगे सुहे आयपरिणामे पण्णत्ते" इति । छाया--" तच्च सम्यक्त्वं प्रशस्तसम्यक्त्वमोहनीयकर्माणुवेदनोपशमक्षय समुत्थः पशमसंवेगादिलिङ्गः शुभ आत्मपरिणामः प्रज्ञप्तः " इति ॥ ___ अस्त्येव स कश्चिदात्मपरिणामो येन जीवाजीवादिस्वरूपाववोघे सत्यपि कस्यचिदेव सम्यक ज्ञानं भवति न तु सर्वस्य, यथा हि शखे दृष्टे सत्यपि कश्चित् तस्मिन् शङ्ख श्वेतिमानं जानाति अन्यस्तु अन्यथाभावमिति तत्र कारणविशेषाऽनु मीयते, एवमिहापि । ततश्च जीवाजोवादि स्वरूपपरिज्ञानस्य सम्यग्भावहेतुरात्मणतिरूप है। इस श्रद्धाके परिचायक प्रशम, संवेग आदि चिह्न हुआ करते है । यह आत्माका एक शुभ परिणाम है । कहा भी है "से य सम्मत्ते पसत्थसम्मत्तमोहणीयकम्माणुवेयणोपसमखयसमुत्थे पसमसंवेगाइलिंगे सुहे आयपरिणामे पण्णते"। छाया-तच्च सम्क्त्वं प्रशस्तसम्यक्त्वमोहनीयकर्मानुवेदनोपशमक्षय समुत्थः प्रशम संवेगादिलिङ्गः शुभ आत्मपरिणामः प्रज्ञप्तः ॥ इति ऐसा कोई एक आत्माका वह परिणाम होता है कि जिसके द्वारा जीव अजीव आदि पदार्थों के स्वरूपका परिज्ञान होने पर किसी जीवको ही सम्यक् ज्ञान होता है सबको नहीं। जैसे शंखके देखने पर कोई व्यक्ति उसको श्वेतरूपसे देखता है और कोई व्यक्ति पीतादिरूपसे देखता है। पीतादिरूपसे होनेवाला ज्ञान सम्यग्ज्ञान नहीं है क्यों कि वह रोगादि कारग विशेषसे सदोष है। इसी तरह जीवादि पदार्थोंका स्वरूप ज्ञान રૂપ છે આ શ્રદ્ધાના પરિચાયક પ્રશમ, સંવેગ આદિ ચિન્હ હોય છે. આ આત્માનું એક શુભ પરિણામ છે. કહ્યું પણ છે– से य सम्मत्त पसत्थसम्मत्तमोहणीयकम्नाणुवेयणोयसमखयसमुत्थे पसमसंवेगाइलिंगे सुहे आय परिणामे पण्णत्ते" ॥ छाया-तच्च सम्यक्त्व प्रशस्तसम्यक्त्वमोहनीय कर्मानुवेदनोपशमक्षयसमुत्थः । __ प्रशमसंवेगादिलिङ्गः, शुभ आमत्मपरिणामः प्रज्ञप्तः ॥ इति ॥ એવું કેઈ એક આત્માનું એ પરિણામ હોય છે કે, જેનાથી જીવ, અજીવ આદિ પદાર્થોના સ્વરૂપનું પરિસાન થવાથી કેઈક જીવને જ સમ્યક્રજ્ઞાન થાય છે. સઘળને નહીં જેમ શંખને જોવાથી કઈ વ્યક્તિ તેને સફેદ રૂપમાં જુએ છે. અને કેઈ વ્યક્તિ પીતાદિરૂપમાં જુએ છે. પીતાદિરૂપથી થનારું જ્ઞાન એ સમ્યકજ્ઞાન નથી. કેમકે, તે રેગાદિ કારણ વિશેષથી સદેષ છે. આજ રીતે જીવાદિ પદાર્થોના સ્વરૂપનું જ્ઞાન સમ્યકત્વના સર્ભાવમાં જ સમ્યફજ્ઞાન /

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