Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 4
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala
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मोक्षमार्गमें प्रवृद्ध न हुए हों और ऐसे कौन शिष्य हैं जिन्होंने आशापरसे काव्यामृतका पान करके रसिकपुरुषों में प्रतिष्ठा न प्राप्त की हो ? ___ आशाधरने अपने अन्य दो शिष्योंके नाम भी दिये हैं-वादीन्द्र विशालकीति और भट्टारक देवचन्द्र 1 विशालकीत्तिको षड्दर्शनन्यायको शिक्षा दी थी और देवचन्द्रको धर्मशास्त्रको । मदनोपाध्यायको काव्यका पण्डित बनाकर अर्जुनवर्मदेव जैसे रसिक राजाका राजगुरु बनाया था। इससे स्पष्ट है कि आशाधर महान विद्वान् थे और इनके अनेक शिष्य थे।
धारा नगरीसे दस कोसको दूरीपर नलकच्छपुर स्थित था। यहां आकर आशाधरने सरस्वतीको साधना विशेषरूपसे की।
आशाधरका व्यक्तित्व बहुमुखी था। वे अनेक विषयोंके विद्वान होनेके साथ असाधारण कवि थे। उन्होंने अष्टांगहृदय जैसे महत्त्वपूर्ण आयुर्वेद ग्रन्थपर टीका लिखी। काव्यालंकार और अमरकोशको टीकाएँ भी उनकी विद्वत्ताको परिचायक हैं । आशाधर श्रद्धालु भक्त थे । उनके अनेक मित्र और प्रशंसक थे। उनका व्यक्तित्व इतना सरल और सहज था, जिससे मुनि और भट्टारक भी उनका शिष्यत्व स्वीकार करने में गौरवका अनुभव करते थे। उनकी लोकप्रियताको सूचना उनकी उपाधियाँ ही दे रही हैं। स्थितिकाल ___ महाकवि आशाघरने अपने ग्रन्थों में रचना-तिथिका उल्लेख किया है। उन्होंने अनगारधर्मामृतको भव्यकुमुदचन्द्रिका टोका कात्तिक शुक्ला पंचमी सोमवार वि० सं० १३०० को पूर्ण की थी। इस समय इनको आयु ६५-७० वर्षकी रही होगी। इस प्रकार उनका जन्म वि० सं० १२३०-३५ के लगभग आता है । पं. आशाधरके तीन ग्रन्थ मुख्य हैं और सर्वत्र पाये जाते हैं। जिनयज्ञकल्प, सागारधर्मामृत और अनगारधर्मामृत | जिनयज्ञकल्पकी प्रशस्तिमें कई ग्रन्थों के नाम आये हैं
स्याद्वादविद्याविशदप्रसादः प्रमेयरत्नाकरनामधेयः । तर्कप्रबन्धो निरवद्यपद्यपीयूषपूरो वतिस्म यस्मात् ॥१०॥ सिद्धथई भरतेश्वराभ्युदयसत्काव्यं निबन्धोज्ज्वलम् यस्त्र विद्यकवीन्द्रमोदनसहं स्वश्रेयसेऽरीरचत् । योऽहंद्वाक्यरसं निवन्धरुचिरं शास्त्रं च धर्मामृतम् विर्माय व्यदधान्मुमुक्षुविदुषामानन्दसान्द्रं हृदि ॥११॥ आयुर्वेदविदामिष्टा व्यक्तुं वाग्भटसंहिताम् । अष्टामहृदयोद्योतं निबन्धमसृजञ्च यः ॥१२॥
आचार्यतुल्य काव्यकार एवं लेखक ४३