Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 4
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala
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द्वितीय परिच्छेद अपभ्र श-भाषाके कवि और लेखक प्राकृत और संस्कृतकै साथ अपभ्रंशने काव्यभाषाके सिंहासनको अलंकृत किया | गुर्जर, प्रातिहार, पालवंश, चालुक्य, चौहान, चेदि, गहड़वाल, चन्देल, परमार आदि राजाओंके राज्यकालमें अपभ्रंशका पर्याप्त विकास हुआ। छठवीं शतीसे चौदहवीं शती तक अपभ्रंशमें अनेक मान्य आचार्य हुए, जिन्होंने अपनी लेखनीसे अपभ्रंश-साहित्यको मौलिक कृतियां समर्पित की।
अपभ्रंशका सबसे पुराना उल्लेख पतञ्जलिके महाभाष्यमें मिलता है। भरतमुनिने अपने नाट्यशास्त्रमें भी अपभ्रंशका निर्देश किया है। हिमवत, सिन्धु, सौवीर तथा अन्य देशोंमें उकारबहुला भाषाको अपभ्रंश कहा है।' भामह, दण्डी, रुद्रट आदि आचार्योंने भी अपभ्रंशको काव्यभाषा होनेका संकेत किया है। छठी शतीके बल्लभीके राजा गुहसेनके एक ताम्रलेखमें संस्कृत,
१. नाट्यशास्त्र १८१८२ ।
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