Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 4
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala
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शिखरपर निर्वाण-लाभ करते हैं । कविने प्रसंगवश सम्यक्त्व, श्रावकधर्म, मुनिधर्म, कर्मसिद्धान्त और लोकके स्वरूपका विवेचन भी किया है । कविता साधारण है और भाषा लोक भाषाके निकट है। ___ इस परिस-ग्रन्थमें कविने धाम, मगर नीर प्रकृतिको विवरणाला चित्रण किया है। नर-नारियोंके चित्रणमें परम्परायुक्त उपमानोंका व्यवहार किया गया है।
बल्ह या बूचिराज कवि बल्ह या बूचिराज मूलसंघके भट्टारक पपनन्दिको परम्परामें हुए है। ये राजस्थानके निवासी थे। सम्यक्त्वकौमुदीनामक ग्रंथ उन्हें चम्पावती (चाटसु)में भेंट किया गया था। बूचिराज अच्छे कवि थे और पठन-पाठन आदिमें इनका समय व्यतीत होता था।
कवित्वकी शक्ति प्राप्त है। कवि अपभ्रंश और लोक-भाषाओंका अच्छा जानकार है। स्थितिकाल
कविने अपनी कतिपय रचनाओं में रचनाकालका निर्देश किया है । उन्हान 'मयणजुज्झ'को समाप्ति वि० १५८९म की है। 'सन्तोषतिलक जयमाल' नामक ग्रन्थ की रचना वि० सं० १५९१में की गई है। अतएव रचनाओंपरसे कांवका समय विक्रम सं० की १६वीं शतीका उत्तरार्द्ध आता है । भाषा, शैली एवं वर्ण्य विषयको दृष्टिसे भी इस कविका समय विक्रमको १६वीं शती प्रतीत होता है। रचनाएँ
कवि आचार-नीति और अध्यात्मका प्रेमी है । अतएव उसने इन विषयोंसे सम्बद्ध निम्नलिखित रचनाएँ लिखी हैं--
१. मयणजुज्झ (मदनयुद्ध), २. सन्तोषतिलकजयमाल, ३. चेतनपुद्गलधमाल, ४. दंडाणागीत, ५. भुवनकोत्तिगीत, ६. नेमिनाथवसन्त और ७. नेमिनाथबारहमासा ।
'मयगजुझ' रूपक-काव्य है। इसकी रचनाका मुख्य उद्देश्य मनोविकारों पर विजय प्राप्त करना है। इस काव्यमें १५९ पद्य हैं, जिनमें आदिनाथ तीर्थकरका मदनके साथ युद्ध दिखलाकर उनकी विजय बसलाई गई है। २३० : तीर्थकर महावीर और उनकी आवायं-परम्परा