Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 4
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala

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Page 458
________________ ८४. पद्मनन्दी (१३८५), ८५. शुभचन्द्र ( १४५०) ८६. जिनचन्द्र ( १५०७), ये तीन आचार्य दिल्लीमें पट्टाधीश हुए हैं । इनके बाद पट्ट दो भागों में विभक्त हुआ । एक नागोरमें गद्दी स्थापित हुई और दूसरी चित्तौड़में निम्नलिखित आचार्योंके नाम चित्तोड़ पट्टके हैं। प्रभाचन्द्रजीसे चित्तौड़का पट्ट प्रारम्भ होता है । ८७. प्रभाचन्द्र ( १५७११, ८८. धम्मं - चन्द्र (१५८१), ८९. ललितकीर्ति (१६०३), ९०, चन्दकीर्ति (१६२२) ९१. देवेन्द्र कीर्ति (१६६२), ९२: नरेन्द्रकीर्ति (१६९१) ९३. सुरेन्द्र कीर्ति (१७२२), ९४. जगत्कीर्ति (१७३३), ९५. देवेन्द्रकीर्ति (१७७०), ९६. महेन्द्रकीर्ति (१७९२), ९७. क्षेमेन्द्रकीर्ति (१८१५), ९८. सुरेन्द्रकीर्ति (१८२२) ९९ सुखेन्द्रकीर्ति (१८५९), १००. नयन कीर्ति (१८७९), १०१. देवेन्द्रकीर्ति (१८८३), १०२. महेन्द्र कीर्ति (१९३८) aritra भट्टारकोंकी नामावली १. रत्न कीर्ति (१५८१), २. भुवनकीर्ति (१५८६), ३. धर्मकीर्ति (१५९०), ४. विशाल कीर्ति (१६०१), ५. लक्ष्मीचन्द्र, ६. सहस्रकीर्ति, ७ नेमिचन्द्र, ८ यशकीर्ति, ९ भुवनकीर्ति, १० श्रीभूषण, ११. धर्मचन्द्र, १२ देवेन्द्रकीर्ति, १३. अमरेन्द्रकीर्ति, १४. रत्नकीर्ति, १५. ज्ञानभूषण, १६. चन्द्रकीर्ति, १७. पद्मनन्दी, १८. सकलभूषण, १९.. सहस्रकीर्ति २० अनन्तकीर्ति २१ हर्षकीर्ति, २२. विद्याभूषण, २३. हेमकीर्ति । यह आचार्य १९१० माघ शुक्ल द्वितीया सोमवार को r पट्टपर बैठे | इनके बाद क्षेमेन्द्रकीर्ति हुए, इनके पट्ट पर मुनीन्द्रकीर्ति हुए और अब नागौरकी गद्दीपर श्रीकनककीर्ति महाराज विराजमान हैं । पट्टावली ४४३

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