Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 4
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala

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Page 457
________________ ३७. रामकीर्ति (८५७), ३८. अभयचन्द्र (८७८), ३९. नरचन्द्र (८९७), ४०. नागचन्द्र (९१६), ४१. नयनन्दी (९३९), ४२. हरिनन्दी (९४८), ४३, महीचन्द्र ( ९७४), ४४. माघचन्द्र ( २९० ) । उल्लिखित महाकीति से लेकर माधचन्द्र तकके अट्ठारह आचार्य उज्जयिनीके पट्टाधीश हुए । ४५ लक्ष्मीचन्द्र (१०२३), ४६. गुणनन्दी (१०३७); ४७. गुणचन्द्र (१०४८), ४८, लोकचन्द्र (१०६६) । ये उल्लिखित पार आाचाय्यं वन्दे (केशव) से पट्टाधीश हुए। ४९. श्रुतकीर्ति (१०७९), ५० भावचन्द्र ( १०९४), ५१. महाचन्द्र (१११५), उल्लिखित तीन आचाय्यं मेलसे [ भूपाल सी० पी० के पट्टाधीश हुए 1 ५२ माघचन्द्र ( ११४० ) | यह आचार्य कुण्डलपुर (दमोह) के पट्टाधीश हुए । ५३. ब्रह्मनन्दी (१९४४), ५४. शिवनन्दी (१९४८), ५५. विश्वचन्द्र ( १९५५), ५६. हृदिनन्दी (१९५६), ५७. भावनन्दी (१९६०), ५८. सूरकीर्ति (१९६७), ५९. विद्याचन्द्र ( ११७० ), ६०. सूरचन्द्र (१९७६), ६१. माघनन्दी (११८४), ६२. ज्ञाननन्दी (१९८८), ६३. गंगकीर्ति (११९९ ), ६४. सिंहकीति (१२०६) । उपर्युक्त बारह आचार्य वारांके पट्टाधीश हुए। ६५. हेमकीर्ति (१२०९), ६६. चारुनन्दी (१२१६), ६७. नेमिनन्दी (१२२३), ६८. नाभिकीर्ति (१२३०), ६९. नरेन्द्रकीर्ति (१२३२) ७०. श्रीचन्द्र ( १२४१), ७१. पद्म (१२४८), ७२. वर्द्धमानकीति ( १२५३), ७३. अकलंकचन्द्र ( १२५६ ), ७४. ललितकति (१२५७), ७५. केशवचन्द्र ( १२६१), ७६. चारुकीर्ति (१२६२), ७७. अभयकीर्ति (१२६४), ७८, बसन्तकीसिं (१२६४) | इण्डियन ऐण्टिक्वेरीकी जो पट्टावली मिली है उसमें उपयुक्त चौदह आचार्योंका पट्ट ग्वालियर में लिखा है, किन्तु वसुनन्दीश्रावकाचार में इनका चित्तौड़में होना लिखा है, पर चित्तौड़के भट्टारकोंकी अलग भी पट्टावली हैं। जिनमें ये नाम नहीं पाये जाते हैं। सम्भव है कि ये पट्ट स्वालियर में हों । इनको ग्वालियरकी पट्टावलीसे मिलानेपर निश्चय होगा । ७९. प्रख्यातकीर्ति (१२६६), ८०. शुभकीर्ति (१२६८), (१२७१), ८२. रत्नकीर्ति (१२९६), ८३. प्रभाचन्द्र ( १३१० ) । ये उल्लिखित ५ आचार्य अजमेर में हुए हैं । ४४२ : तीर्थंकर महावीर और उनको आचार्यपरम्परा ८१. धर्म्मचन्द्र

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