Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 4
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala

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Page 448
________________ लिये सूर्य तुल्य, परवादियोंके सिद्धान्तरूपी हाथीके मस्तकको विदीर्ण करने में सिंहके समान श्री लोकचन्द्र, प्रभाचन्द्र, नेमिचन्द्र, भानुनन्दी और सिंहनन्दी योगीन्द्रोंके ॥११॥ आचारांग आदि महाशास्त्रोंकी प्रवीणता द्वारा भव्यजनोंको प्रतिबोधित करनेवाले, स्याद्वादरूपी समुद्रकी उत्ताल तरंगरूपी सद्युक्ति द्वारा सोगत सांख्य- शेव- वैशेषिक-भाट्ट ( मीमांसक ) और चार्वाक आदि गजेन्द्रोंको नीचे गिरानेवाले श्री वसुनन्दी, वीरनन्दी, रत्ननन्दी, माणिक्यनन्दी, मेघचन्द्र, शान्तिकीर्ति, मेरुकीर्ति, महाकीतिं विष्णुनन्दी श्रीभूषण, शीलचन्द्र, श्रीनन्दी, देशभूषण, अनन्तकोर्ति, धर्मनन्दी, विद्यानन्दी, रामचन्द्र, रामकीर्ति, निर्भयचन्द्र, नागचन्द्र, नयनन्दी, हरिचन्द्र, महीचन्द्र, माघवचन्द्र, लक्ष्मीचन्द्र गुणचन्द्र, वासचचन्द्र और लोकचन्द्र मणीन्द्रोंके ॥ १२ ॥ 1 सुरासुरखेचरन रनिकरचचितचरणाम्भोरुहाणां श्रुतकीर्तिभावचन्द्रमहाचन्द्रमेघचन्द्रब्रह्मनन्दिशिवनन्दिविश्वचन्द्रस्वामिभट टारकरणाम् ॥१३॥ दुर्धरतपश्चरणवज्राग्निदग्धदुष्टकर्म्म काष्ठानां श्रीहरिनन्दिभावनन्दिस्वरकीर्तिविद्याचन्द्ररामचन्द्रमागमनन्दितही तिरुपि नेमिनन्दिनाभिकीर्तिनरेन्द्र कीर्ति श्रीचन्द्रपद्मकीर्तिपूज्यभट टारकाणाम् ||१४| सकलतार्किक चूडामणिसमस्तशाब्दिकस रोजराजितरणिनिखिलागमनिपुणश्रीमदकलङ्कचन्द्रदेवानाम् ||१५|| ललितलावप्यलीलालक्षितगात्र त्रैविद्याविलासविनोदितत्रिभुवनोदरस्थविबुध कदम्बचन्द्रकरनिकरसन्निभयशोभरसुधारसघवलितदिग्मण्डलानां श्रीललितकीर्तिकेशवचन्द्र चारुकीर्त्यभयकीर्तिसूरिवर्याणाम् ॥ १६॥ देवता, राक्षस, खेचर और मनुष्यों द्वारा पूजित चरणकमलवाले श्रुतिकीतिं, भावचन्द्र, महाचन्द्र, मेघचन्द्र, ब्रह्मनन्दी, शिवनन्दी और विश्वचन्द्र स्वामी भट्टारकोंके ||१३|| अत्यन्त कठिन तपस्यारूपी वज्राग्नि द्वारा बुरे कर्मरूपी काष्ठको जला चुकनेवाले हरिनन्दी, भावनन्दी, स्वरकीसिं, विद्याचन्द्र, रामचन्द्र, माघनन्दी, ज्ञाननन्दी, गङ्गकीर्त्ति, सिंहकीत्तिं चारुकीत्तिं नेमिनन्दी, नाभिकीत्तिं नरेन्द्रकीत्तिं श्रीचन्द्र और पद्मकीर्ति पूज्य भट टारकोंके ॥१४॥ · सभी तार्किकोंके शिरोभूषण, समस्त वैयाकरणरूपी कमलोंके लिए सूर्य और सम्पूर्ण आगममें निपुण श्रीअकल चन्द्रदेवके ||१५|| २८ पट्टावली ४३३

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