Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 4
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala

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Page 447
________________ जैनागमके सारको दश अध्यायोंमें "तत्त्वार्थसूत्र" के रूप में प्रस्तुत करनेवाले श्रीमान् उमास्वातिदेवके ||३|| सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यक् चारित्र, सम्यक् तपस्या और विचारचातुर्य के चमत्कारसे चतुर लोगों के समूहको चमत्कृत करनेवाले चौरासी हजार श्लोक परिमित 'बृहदाराधनासार' की रचना करनेवाले श्री लोहाचार्यके ||४|| अष्टादश वर्णों द्वारा 'प्रबोधसार' आदि ग्रन्थोंके रचयिता श्री यशः कीर्ति मुनिवरके ॥५॥ इन्दु कुमुदकी माला, तुषार (हिम) और काश नामक तृणके समान स्वच्छ यशःपुञ्जसे भूषित श्रीयशोनन्दीश्वरके ॥६॥ जैनेन्द्रमहाव्याकरणश्लोकवार्तिकालङ्कारादि (?) महाग्रन्थकर्ता मां श्रीपूज्य पाददेवानाम् ||७|| सम्यग्दर्शनगुणगणमण्डित श्रीगुणनन्दिगणीन्द्राणाम् ||८|| ||९|| परवादिपर्वतवज्जायमानश्रीवचनन्दियतीश्वराणाम् सकलगुणगणाभरणभूषितश्रीकुमारनन्दिभट टारकाणाम् ||१०|| निखिलविष्टपकमलवनमार्तण्डतपः श्रीसंजातप्रभादूरीकृतदिगन्धकारसिद्धान्तपयोधिशशधर मिथ्यात्वतमोविनाशन भास्करपरवादिमते भकुम्भस्थलविदारणसिंहानां श्रीलोकचन्द्रप्रभाचन्द्रनेमिचन्द्रभानुनन्दिसिंह्नन्दियोगीन्द्राणाम् ॥ ११॥ आचाराङ्गादिमहाशास्त्रप्रवीणताप्रतिबोधितभव्यजननिक रस्याद्वादसमुद्रसमुत्थसदुपन्यासकल्लोलाघः पातितसौगत- सांख्य- शेव- वैशेषिक भाट टचार्वाकादिगजेन्द्राणां श्रीमद्वसुनन्दिवीरनन्दि रत्ननन्दिमाणिक्यनन्दिमेघचन्द्रशान्तिकीर्तिमयकीर्तिमहाकीर्तिविष्णुनन्दिश्रीभूषणशील चन्द्रश्रीनन्दिदेशभूषणानन्तकीतिं धर्मनन्दिविद्यानन्दि रामचन्द्र रामकीर्तिनिर्भय चन्द्रनागचन्द्रनयनन्दिहरिचन्द्रमहीचन्द्रमाघवचन्द्रलक्ष्मीचन्द्रगुणचन्दवासवचन्द्रमणीन्द्राणाम् ||१२|| जैनेन्द्र महाव्याकरण और श्लोकवार्तिकालंकार (?) आदि महान् प्रत्योंके रचयिता श्रीपूज्यपाददेवके ||७|| सम्यदर्शनकी गुणराशिसे भूषित श्रीगुणनन्दो गणीन्द्रके ॥८॥ परवादीरूप पर्वतोंके लिए वज्रके समान श्रीवानन्दी यतीन्द्रके ||९|| सकलगुणसमूहरूपी आभरणोंसे अलंकृत श्रीकुमारनन्दी भट्टारकके ||१०|| सम्पूर्ण संसार रूप कमलवनको विकसित करनेमें सूर्यके समान, तपस्याकी छविसे उत्पन्न प्रभाद्वारा सभी दिशाओंके अन्धकारको दूर करनेवाले, सिद्धान्तसमुद्रकी पुष्टि करनेमें चन्द्रमास्वरूप मिथ्यात्वरूपी अन्धकारको दूर करनेके ४३२ : तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा P

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