Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 4
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala

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Page 450
________________ अनेक अध्यात्मशास्त्ररूपी कमलसमूहको विकसित करनेवाले सूर्यस्वरूप, यथाख्यातचारित्रके विधान द्वारा देने को प्रसन्न करनेवालो मीन्द्रिदेव भट्टारकके ॥२१॥ तीनों विद्याओंके ज्ञाताओंमें शिरोभूषण-स्वरूप, मण्डलाकार परिवेष्टित संसारियोंद्वारा सेवित युगल (चरण) कमलवाले (?), अवन्तीदेशकी (मूत्ति) प्रतिष्ठामें उपदेश देनेवाले सातसौ परिवार-रूपी समुद्रके अन्तर्गत ज्ञातिसुश्रावकोंके उद्धारक श्रीदेवेन्द्रकोत्ति और शुभकीर्ति भट्टारकोंके ॥२२॥ तत्पट्टोदयसूर्याचार्यवर्यनवविघब्रह्मचर्यपवित्रचर्यामन्दिरराजाधिराजमहामण्डलेश्वरनजांगगंगजयसिंहश्याघ्रनरेन्द्रादिपूजितपादपमानां, अष्टशाखाप्रागवाटवंशावतंसानां, षड्भाषाकविचक्रवत्तिभुवनतलव्याप्तविशदकीतिविश्वविद्याप्रासादसूत्रधारसद्ब्रह्मचारिशिष्यवरसूरिश्रीश्रुतसागरसेवितचरणसरोजानां, श्रीजिनयात्राप्रतिष्ठाप्रासादोद्धरणोपदेशनैकदेशभव्यजीवप्रतिबोधकानां, श्रीसम्मेदगिरिचम्पापुरीउज्जयन्तगिरिअक्षयवटआदीश्वरदीक्षासर्वसिद्धक्षेत्रकृतयात्राणां, श्रीसहस्रकूटजिनबिम्बोपदेशकहरिराजकुलोद्योतकराणां, श्रीरविनन्दिपरमाराध्यस्वामिभट्टारकाणाम् ॥२३॥ तत्पट्टोदयाचलबालभास्करप्रवरपरवादिगजयूथकेसरिमण्डपगिरिमन्त्रवादसमस्याप्तचन्द्रपुर्विकटवादिगोपदुर्गमेधाकर्षणविकजनसस्यामृतवाणिवर्षणसुरेन्द्रनागेन्द्रादिसेवितचरणारविन्दानां, मालवमलतानमगधमहाराष्ट्रगौडगुज्जरांगवंगतिलंगादिबिबिधदेशोत्यभव्यजनप्रतिबोधनपटुबसुन्धराचार्यग्यासदीनसभामध्यप्राप्तसम्मानधीपद्मावत्युपासकानां श्रीमल्लिभूषणभट्टारकवाणाम् ॥२४॥ उनके पट्ट पर उदित सूर्यके समान, आचार्यप्रवर, नौ प्रकारके ब्रह्मचर्य द्वारा चारित्ररूपी मन्दिरको पवित्र करनेवाले, राजाधिराज महामण्डलेश्वरवनांग, गंग और जयसिंह इन श्रेष्ठ राजाओं द्वारा पूजित चरणकमलवाले, अष्टशाख प्रागवाट वंशमें उत्पन्न, छ: भाषाओंमें कविसम्राट , पृथ्वीतलपर विस्तृत स्वच्छ कीर्तिवाले; अखिल विद्याओंके प्रासादके सूत्रधार, पूर्ण ब्रह्मचारी शिष्य-श्रेष्ठ सूरी श्री श्रुतसागरजी द्वारा सेवित चरणकमलवाले, श्री जिनयात्रा, प्रतिष्ठा और मन्दिरोद्धारके उपदेशों द्वारा मुख्य मुख्य देशोंके भव्य जीवोंको उद्बोधित करनेवाले, श्रीसम्मेदगिरि, चम्पापुरी, उज्जयंतगिरि, आदोश्वरदीक्षास्थान, अक्षयवट, और सभी सिद्धक्षेत्रोंकी यात्रा करनेवाले, श्री सहस्रकूट जिनबिबोपदेशक एवं हरिवंशको उद्भासित करनेवाले श्रीरविनन्दी नामक परम-आराध्य स्वामी भट्टारकके ॥२३॥ पट्टायली : ४३५

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