Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 4
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala
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अलंकार, व्याकरण और कोश आदि ग्रन्थ विशेषतः जैनोंके द्वारा ही रचे गये है।
उपर्युक्त उद्धरणसे यह स्पष्ट है कि जेनसाहित्यकारोंने कन्नड़ साहित्यकी महत्ती सेवा की है। काव्य, अलंकार, व्याकरण, छन्द, आयुर्वेद, ज्योतिष, गणित आदि विभिन्न क्षेत्रोंमें जैनकवियोंने अमूल्य ग्रन्यरत्न प्रदान कर कन्नड़ वाङ्मय को समृद्ध किया है।
तमिलके जैन कवि और लेखक तमिल साहित्यके महाकाव्य और लघुकाव्योंके लेखक प्रमुख रूपसे जैन कवि हैं। तमिल साहित्य संस्कृत साहित्यके समान ही प्राचीन है । व्याकरण, अलंकार, छन्द आदि विषयक ग्रन्थोंके निर्माता जैन विद्वान हैं। हम यहाँ विस्तारसे विचार न कर संक्षेपमें ही तमिलभाषामें लिखित जैन साहित्यपर प्रकाश डालनेका पस्न करेंगे। तमिलभाषाका सबसे पुराना काव्य 'कुरल' है । इसको गणना तमिल भाषाके आचार और नीति सम्बन्धी धर्मग्रंथोंमें की जाती है। इसे पश्चम वेद कहा गया है । इसके रचयिता एलाचार्य माने जाते हैं । इस अन्धकी रचना ई० सन्की प्रथम शताब्दीमें पादिरीपुलीयूर अथवा दक्षिण पाटलीपुत्र नामक स्थानमें सम्पन्न हुई है। इसमें धर्म, अथं और कामका विवे. चन किया गया है । प्रथम अध्याय में गृहस्थ और साधुओंके आचरण करने योग्य नियमोंका विस्तृत वर्णन आया है।
द्वितीय अध्यायमें ओवनको आवश्यकताओं, राज्य संचालन एवं राजनीतिका वर्णन है । तृतीय अध्यायमें वास्तविक और अवास्तविक प्रेमका बड़ा ही सजीव चित्रण है। इन तीन मुख्य विषय निरूपक अध्यायोंके अतिरिक्त इस ग्रन्थमें १३३ प्रकरण और १३३० कुरल हैं । कुरलका अर्थ छोटा पद्य है । इस प्रन्यपर दश प्राचीन दोकाएं पायो जाती हैं, जिनमें सर्वाधिक प्राचीन टोका घरूम अथवा धर्मसेन द्वारा लिखी गयो है । ये धर्मसेन जैन विद्वान थे। कुरल काम्यके अन्तर्गत ऐसे अनेक सिद्धान्त वणित हैं, जिनके आधारगर इस ग्रन्थको जैन कहा जा सकता है।
नालडियार ग्रन्थ पाण्डिराज निवासी भिन्न-भिन्न सन्तों द्वारा निर्मित हुआ है । इस ही नामके छन्दोंमें यह ग्रन्थ लिखा होनेके कारण इस ग्रन्थका नाम 'नालाडियर' रक्खा गया है | इस ग्रन्थ में ४०० पद्य हैं और इनका संग्रह कुरल १. कर्नाटककविपरिते, भाग १ और रकी प्रस्तावना ।
३१२ : तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य-परम्परा