Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 4
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala
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सेसेक्करसंगाणं चोद्दसपुव्वाण मेक्कदेसवरा । एक्कसर्व अट्ठारसवासजुद ताण परिमाणं ||१४९१ ॥ तेसु अदीदेसु तदा आचारधरा ण होंति भरहम्मि । गोदमणि पहुदीणं वासाणं छस्सदाणि तेसीदी' ॥१४९२॥
जिस दिन भगवान् महावीर सिद्ध हुए, उसी दिन गौतम गणधर केवलज्ञानको प्राप्त हुए । पुनः गौतमके सिद्ध होनेपर उनके पश्चात् सुधर्मस्वामी केवली हुए ।।१४७६ ॥
सुधर्मस्वामी के कर्म नाश करके अर्थात् मुक्त होनेपरं जम्बूस्वामी केवली हुए । पश्चात् जम्बूस्वामीके भी सिद्धिको प्राप्त होनेपर फिर कोई अनुबद्धकेवली नहीं रहे || १४७७ ॥
गौतमादिक केवलियोंके कालका प्राण पिण्डरूपसे बासठ वर्ष है || १४७८ ।।
केवलज्ञानियों में अन्तिम श्रीवर कुण्डलगिरिसे सिद्ध हुए और चारणऋषियोंमें अन्तिम सुपार्श्वचन्द्र नामक ऋषि हुए || १४७९ ।
प्रज्ञाश्रमणोंमें अन्तिम चायश और अवधिज्ञानियोंमें अन्तिम श्रुत, विनय एवं सुशीलादिसे सम्पन्न श्रीनामक ऋषि हुए || १४८०॥
मुकुटधरोंमें अन्तिम चन्द्रगुप्तने जिनदीक्षा धारण की। इसके पश्चात् मुकुटधारी प्रव्रज्याको ग्रहण नहीं करते || १४८१ ॥
प्रथम नन्दी, द्वितीय नन्दिमित्र, तृतीय अपराजित, चतुर्थं गोवर्द्धन और पंचम भद्रबाहु इस प्रकार ये पाँच पुरुषोत्तम जगमें 'चौदहपूर्वी' इस नामसे वीस्यात हुए | थे बारह अंगोंके धारक पाँचों श्रुतकेवली श्रीवर्धमान स्वामीके तीर्थ में हुए ॥१४८२, १४८३||
इन पाँचों श्रुतकेवलियोंका काल मिलाकर सौ वर्ष होता है। पांचवें श्रुतकेवलोके पश्चात् फिर भरतक्षेत्र में कोई श्रुतकेवली नहीं हुआ || १४८४ ॥
विशाख, प्रोष्ठिल, क्षत्रिय, जय, नाग, सिद्धार्थ, धृतिषेण, विजय, बुद्धिल, गंगदेव और सुधर्म ये ग्यारह आचार्य दश पूर्वके धारी विख्यात हुए हैं। परम्परासे प्राप्त इन सबका काल एकसौ तेरासी १८३ वर्ष है ॥ १४८५, १४८६
कालके वश इन सब श्रुतकेयलयोकि अतीत होनेपर भरतक्षेत्रमें भव्यरूपी कमलोको विकसित करनेवाले दशपूर्वधररूप सूर्य फिर नहीं हुए ।। १४८७ ॥
नक्षत्र, जयपाल, पाण्डु, ध्रुवसेन और कंस ये पाँच आचार्य वीर भगवान् के तीर्थ में ग्यारह अंगके धारी हुए ॥१४८८।।
१. तिलो पण्णत्ती - शोलापर - संस्करण, गाथा ४-१४७६ - १४९२ ।
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पट्टावली : ३५३