Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 4
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala
View full book text
________________
P
इनके पट्टरूपी उदयाचलके लिये सूर्यके समान गुर्जर देशमें सर्वप्रथम सागारधर्मका प्रचार करनेवाले, अहीरदेशमें स्वीकृत एकादश प्रतिमा (क्षुल्लक पद) से पवित्र शरीरवाले, बाग्बरदेशमें अंगीकृत दुर्धर महाव्रत ( मुनिपद) के भारको धारण करनेवाले, कर्णाटक देशमें ऊँचे-ऊंचे चेत्यालयोंके दर्शनसे महापुण्यको उपार्जित करनेवाले, तौलव देशके महावादीश्वर विद्वज्जनचकवतियों में प्रतिष्ठा प्राप्त करनेवाले तिलंग देशके सज्जनोंसे पूजित चरणकमलबाले, द्रविड़ देशके सुविज्ञोंसे स्तुति किये जानेवाले, महाराष्ट्र देशमें उज्ज्वल यशका विस्तार करनेवाले, सौराष्ट्र देशके उत्तम उपासकोंसे महोत्सव मनाये जानेवाले, सम्यग्दर्शन से युक्त रायदेशके निवासी प्राणिसमूहसे प्रमाणीकृत वाक्यवाले, मेदपाट देशके अनेक मूढ़ोंको समझानेवाले, मालवदेशके भव्योंके हृदय - कमलको बिकसित करने के लिये सूर्यके समान, मेवातदेश के अन्यान्य विज्ञ उपासकोंको अपने आध्यात्मिक व्याख्यानोंसे रंजित करनेवाले, कुरुजांगल देशके प्राणियोंक अज्ञानरूपी रोगको हटाने के लिये सद्वैद्य के समान, तुरवदेशमें षड्दर्शनन्याय आदिके अध्ययन से उत्पन्न अखर्व गर्व करने वालोंको दबाकर विजय प्राप्त करनेवाले, विराट् देशमें उभय मार्गको प्रदर्शित करनेवाले, नमियाड़ देशमें जिनकी अत्यन्त प्रभावना और नव हजार उपदेशकों को नियत करनेवाले, टग, राट, हडीबटी, नागर और चाल आदि अनेक जनपदोंमें ज्ञानप्रचारके लिये विहार करनेवाले, श्रीभूलसंघ बलात्कारगण सरस्वतीगच्छके दिल्लीसिंहासन के अधिपति, अपने प्रतापसे दिमण्डलको आक्रमण करनेवाले, अष्टअंगयुक्त सम्यक्त्व आदि अनेक गुणगणसे अलंकृत और श्रीमत् इन्द्र भूपालोंसे पूजित वरणकमलवाले, गजान्त लक्ष्मी, ध्वजान्त पुण्य, नायान्त भोग, समुद्रान्त भूमिभाग के रक्षक सामन्तोंके मस्तकसे घृष्ट चरणकमलवाले श्रीदेवराय राजसे पूजित पादपद्मवाले, जिनधर्मके आराधक मुदिपालराम, रामनाथराय, बोमरसराय, कलपराय, पाण्डुराय आदि अनेक राजाओंसे अर्चित चरणयुगलवालं, अनेक तीर्थयात्राओं को करनेवाले, मोक्षलक्ष्मीको वशीभूत करनेवाले, रत्नत्रयसे सुशोभित शरीरवाल, व्याकरण, छन्द, अलङ्कार, साहित्य, न्याय और अध्यात्मप्रमुख शास्त्ररूपों मानसरोवर के राजहंस, शुद्ध ध्यानरूपी अमृतपानकी लालसा करनेवाले और वसुन्धराके आचार्य श्रीमद्भट्टारकवय्यं श्री ज्ञानभूषण हुए ||
जो इनके पट्टरूपी पद्मके लिये सूर्यके समान हैं, विवेकपूर्वक अनेक जीर्ण अथवा नूतन जिन प्रासादोंका अद्धार करानेवाले हैं, अनेक प्रकारके जिनविकी प्रतिष्ठाका उपदेश देनेवाले हैं, जिनकी यशोराशिका मान अङ्ग, बङ्ग, कलिङ्ग, तौलव, भालव और मेदपाट आदि देशोंक निवासियोंने किया है, जिनके
४०८ : तीर्थकर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा