Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 4
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala
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अच्छी बुद्धि पायी हैं, इसलिये मुझे सज्जनोंकी संगति, और श्रीजिनधर्मकी सेवा करनी चाहिए, क्योंकि इनके बिना आदमी कृती नहीं हो सकता।
७१, सारे संसारका स्वरूप जानकर, योगिराट -'सभी संसार विनश्वर है' ऐसा कहकर शान्तिको धारण करते हुए आधी आँखें मीचकर स्वरूपको देखते हुए समाधिको प्राप्त हुए।
७२. अपने हृदय-कमलमें स्वच्छ रूपको धारण कर तथा अमृतसदश उन मूलमन्त्रोंसे सींचते हुए श्रुतमुनिने स्तोत्र-पाठके साथ-साथ शान्तिपूर्वक अपने शरीरको छोड़ा ।
७३. जिनके उत्पन्न होनेपर अज्ञानान्धकारावृत्त यह संसार ज्ञानवान होकर हर्षयुक्त हुआ, सो आज उन्हींके स्वर्ग जानेपर लोग उष्ण उच्छ्वास ले-लेकर आँखोंसे शोकाश्रुधारा बहा रहे हैं। ठीक है, बड़ोंका वियोग दुस्सह होता
७४. इन महामुनिके चरण-कमल प्राय: सभी राजाओंने शिरोधृत किए तथा इनकी सच्चरित्रता भी अपने हृदय में सभी ऋषिवर्योने गृहीत की 1 वही महात्मा आज भाग्यवश परलोकको चल बसे, इसलिये आप लोग भी उन्हींकेसे सद्धर्मकार्योंको पालन करनेके लिये अवतरित होनेकी कोशिश करें।
७५ जिन महात्माओंके चरित्र अनिन्द्य हैं, वे जिस स्थानमें परलोकको जाते हैं उस स्थानको भी पूजा करनी उन्हींकी पूजा करनी है, इसलिए जिनधर्म-प्रचारक श्रुतमुनिका यह स्थान (निषद्या) सदा बना रहे।
७६. शक १३६५ वैशाख शुक्ल नवमी बुधवारको इन्होंने स्वर्गको प्रस्थान किया।
७७ सभी क्रियाको शान्त करनेवाला, अज्ञानान्धकारको हटानेवाला, सभी आशयसे रहित और अवाङ्-मनस-गोचर संसारमें सभी शक्तिको जीतनेवाला जो कोई दिव्य तेज है, वह मेरे हृदयमें सदा रहे।
७८. इस प्रबन्धकी निसे सम्बन्ध रखनेवाली, तथा सच्चे प्रेमको उत्पन्न करनेवाली मङ्गराजकी वाणी वीणाकी-सी होवे ।
सेनगण-पट्टावली बद्धाष्टकमंनिर्घाटनपटुशुद्धेद्धराद्धान्तप्रभाबोधितनवखण्डमण्डनश्रोनेमिसेनसिद्धान्तीनाम् ॥२०॥
अतीवघोरतरतरांतपनसंतप्तत्रलोक्यप्राणिगणतापनिवारणकारणच्छत्रायभानश्रीमच्छीछत्रसेनाचार्याणाम् ॥२१॥
उनदीप्ततप्तमहातपोयुक्तार्यसेनानाम् ।।२२॥ ४२४ : तीर्थकर महावीर और उनकी आधार्यपरम्परा