Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 4
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala

View full book text
Previous | Next

Page 443
________________ अंगदादियोंके लिये भंगशील, कलिंगवादियोंके लिये कालाग्नि, काश्मीरवादियोंके लिये प्रलयकालको उष्णता, नैपालवादियोंके लिये शाप-क्षमा करनेमें समर्थ, द्राविड़वालोंके लिये प्रोटनशील, गौड़वादियोंके लिये ब्रह्मराक्षस, केवल वावियोंके लिये कोलाहल, तैलंगवादियोंके लिये शिरोव्यथा, उड्डोयदेशमें गज, अश्व आदिके स्वामी, सभामै प्रविष्ट उग्र यमदण्ड, गजराजके सुण्डादण्डको छिन्न-भिन्न करनेवाले तथा कालदण्डके समान शोभित बाहुवाले श्री दुर्लभसेनाचार्य हुए ।।२९॥ तपस्याको ही कर्णभूषण माननेवाले श्रीमान श्रीषेण भट्टारक हुए ॥३०॥ दुर्वार्य दुर्वादियोंके गर्वरूपी पर्वतको चूर्ण करनेके लिये बनके समान दक्ष परिग़ज श्रीलक्ष्मीसेन भट्टारक हुए ॥३१॥ नवलक्ष धनुर्धरोंके स्वामी, दक्षिणके फर्नाटकीय सत्रह लाख राजाओंके मस्तकोंकी मणिमालाकी प्रभासे उद्भासित, मधुजलकी धारामें धुल हुए चरणनखबिम्बवाले श्री सोमसेन भट्टारक हुए ॥३२॥ __ अलकेश्वरपुरके भरोच नगरमें राजेश्वरस्वामी यवनराजाओंमें श्रेष्ठ मोहम्मद बादशाहकी रक्षाका परिकाकी पूर्तिरो समट होनेसे अठारह बर्षकी अवस्थामें स्वर्गगामी श्री श्रुतवीर स्वामी हुए ॥३३॥ भंभेरीपुरमें धनेश्वर भट्टसे भ्रष्टकर्म हुए अग्निमें फेंके हुए यज्ञोपवीतादिके द्वारा जोते हुए ब्रह्मदेवके धर्मके सुखसे शुद्धान्तःकरण श्रीमान् धरसेनाचार्य हुए ॥३४॥ हाव, भाव, बिभ्रम और विलासकी शोभाके शृंगाररूपी भृङ्गीसे आलिंगित, बाल, मुग्ध और युवती नागरिक स्त्रियोंसे मन वचन कायसे मुक्त तथा नव प्रकारके ब्रह्मचर्यसे युक्त श्री देवसेन भट्टारक हुए ॥३५॥ अनेक शुभचिन्तक मनुष्यरूपी चातकके समूहको प्रसन्न करनेवाले मधुवातकी धारासे मुक्त नया शरीर बनानेवाले श्री देवसेन भट्टारक हुए ॥३६॥ __ उनके पट्टके उदयाचलके सूर्य, नित्यादि एकान्तवादियोंके प्रथम वचनके खण्डनकारक, उन विस्तारवाले छहों दर्शनके स्थापनके आचार्य, छतर्कशास्त्रके स्वामी, दिल्ली-सिंहासनके अधिपति, सार्वभौम, अभिमानयुक्त वादीरूप हाथीके लिये सिंहके समान त्रिकालज्ञ श्री सोमसेन आचार्य हुए ॥३७॥ उनके पट्टको वृद्धिसे पूर्ण चन्द्रमाके समान, अभिनववादी, संस्कृतके ज्ञाता प्राकृत और संस्कृत भाषाके स्वामी, वनपंजरके तुल्य अंग, बंग, कलिंग, काश्मीर, कम्भोज, कर्नाटक, मगध, पाल, तुरल, घेरल और केरलके जीते हुए ४२८ : तोर्यकर महावीर और उनकी आचार्यपरम्परा

Loading...

Page Navigation
1 ... 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510