Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 4
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala

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Page 397
________________ व्यसृजदनिजमङ्ग भंगमंगोद्भवस्थ प्रथितुमिव समूल भावयन्भावनाभिः ॥७०॥ चूर्णि ॥ तेन श्रीमदजित सेन- पण्डिव-देव- दिव्य- श्रीपाद कमल-मधुकरीभूतभावेन महानुभावेन जैनागमप्रसिद्धसल्लेखना - विधि-विसृज्यमान- देहेन समाधि-विधि-विलोकनोचित-करणकुतूहल- मिलित-सकल-संघ -सन्तोष-निमित्तमात्मान्तःकरणपरिणति प्रकाशनाय निरवद्यं पद्यमिदमाशु विरचितं ॥ आराध्य रत्नत्रयभाग भोक्तं विधाय निश्शल्यमशेषजन्तो: क्षमां च कृत्वा जिनपादमूले देहं परित्यज्य दिवं विशामः ॥ ७१ ॥ शाके शून्य-शराम्बरावनिमिते संवत्सरे कीलके माते फाल्गुनके तृतीयदिवसे वारे सिते भास्करे । स्वाती श्वेत-सरोवरे सुरपुरं यातो यतीनां पतिमध्याह्ने दिवसत्रयानशनतः श्रीमल्लिषेणो मुनिः ॥७२॥ श्रीमन्मलधारि-देवरगुड्डविरुद-लेखक-मदनमहेश्वरं मल्लिनाथ बरेदं विरुद्र - रूवारि-मुख तिलकं गंगाचारि कण्डरसिद प्रशस्तिके प्रथम पद्यमें वर्धमानजिनका स्मरण किया है। अनन्तर सप्तऋद्धिधारी गौतम गणधर मोहरूपी विशाल मल्लके विजेता भद्रबाहु और उनके शिष्य चन्द्रगुप्त, कुन्दपुष्पकी कान्तिके समान स्वच्छ कीत्तिरश्मियोंसे विभूषित कुन्दकुन्दाचार्य, बादमें 'धूर्जट' की जिल्लाको स्थगित करनेवाले समन्तभद्र, सिंहनन्दी, वादियों के समूहको परास्त करनेवाले एवं छह मास तक 'अथ' शब्दका अर्थ करनेवाले बक्रग्रीव, नवीन स्तोत्रकी रचना करनेवाले वचनन्दी 'त्रिलक्षणकदर्थन' ग्रन्थके कर्ता पात्रकेसरी, 'सुमतिसप्तक के कर्ता सुमतिदेव, महाप्रभावशाली कुमारसेनमुनि, पुरुषार्थचतुष्टयके निरूपक - 'चिन्तामणि' ग्रन्थके कर्ता चिन्तामणि कविचूडामणि श्रीवद्ध देव चूडामणि, सत्तर-वादिविजेता तथा ब्रह्मराक्षसके द्वारा पूजित महेश्वरमुनि साहसतुरंग नरेशके सम्मुख हिमशीतल नरेशकी सभा में बौद्धों के विजेता अकलंकदेव, अकलंकके सर्मा -- गुरुभाई पुष्पंसेन, समस्त वादियोंको प्रशमित करनेवाले विमलचन्द्रमुनि, अनेक राजाओं द्वारा वन्दित इन्द्रनन्द, अन्वर्थ नामवाले परवादिमल्लदेव, कायोत्सर्गमुद्रामें तपस्या करनेवाले आर्यदेव श्रुतबिन्दुके कर्ता चन्द्रकीति, कर्म प्रकृतिभट्टारक, पार्श्वनाथचरितके रचयिता वादिराज, उनके गुरु मतिसागर और प्रगुरु श्रीपालदेव, विद्याधनंजय महामुनि हेमसेन, 'रूपसिद्धि' व्याकरणग्रन्थके ३८२ : तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा "

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