Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 4
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala
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अज्ञान-तिमिरनाशक, भव्यजीवप्रतिबोधक, श्रीयशःकीर्तिके पट्टको प्रसारनेवाले, सूर्योतिशायी तेजस्वी, श्रीपद्मनन्दी हुए ॥४९॥
वह श्रीमान् पद्मनन्दी मुनि कुवादिवादविजयी, शुतात्मलीन, निर्मलचरित्र, शास्त्रसमुद्रपारगामी, राजमान्य, श्रीरामकीसिके पट्टको अलंकृत करें ॥५०॥
उनके पट्टधर, अनेक राजाओंको सम्बोधनेवाले, बुद्धिशाली, श्रीदेवेन्द्रकीर्ति हुए। वह श्रादेन्द्र मोतिर गगलतिले राजाओंसे मानित सदा कल्याण करें ॥५१॥५२॥
उनके पट्टपर पापतिमिरविनाशक, श्रीक्षेमकीर्ति मुनि हए। वह क्षेमकीर्ति मुनि वस्तुके हेयोपादेयतामें प्रवरबुद्धि, प्राणिमात्र-हिताकांक्षी, वचन माधुरीसे समस्त राजाओंको अनुरञ्जित करनेवाले इस पृथ्वीतल पर अनेक शतवर्ष जीव्यमान रहें ॥५३॥५४॥
उनके पट्टपर दुष्कर्महत्ता, भव्य-कमलोंके अपूर्व सूर्य, श्रीनरेन्द्रकीर्ति जयवन्त रहें, जो श्रीस्याद्वादशास्त्रज्ञ, स्फूर्यमाण, अध्यात्म-रसास्वादी, मोक्षमार्गको दिखानेवाले, सर्वज्ञमन्य-कुवादि-वादियोंके मदहर्ता हुए ॥५६॥
इनके पट्टरूपी समुद्रको बढ़ानेमें पूर्णचन्द्रके समान, कामहस्तिविदारणगजेन्द्र, सम्यक्ज्ञानपनबिकाशी-सूर्य, उपदेशवृष्टि करने में मेघतुल्य, मिथ्यान्धकार नष्ट करने में अतिशायी भानु, अनेकशास्त्रपारगामी श्रीविजयकोत्ति हमारा मंगल करें ।।५७॥५८॥
उनके पट्टपर वादीन्द्रचूडामणि श्रीनेमिचन्द्राचार्य हुए। वह षट्शास्त्रपारंगत, दिप्रसरितयशोभागी, आत्मज्ञान-रस-निर्भर, यतिशिरोमणि, हजारों वर्ष जीवित रहें ॥९॥६०॥ ___ उनके शिष्य, अनेक राजसभामें सम्मानित, श्रीचन्द्रकीत्ति भट्टारक हुए, जो श्रीऋषभदेव-चरणभक्तिपरायण, नित्यध्यानाध्ययनमें लीन, दयाके समुद्र, महाव्रती, आत्मानुभवी और गुणशाली थे तथा जिन्होंने इस भारतभूमिको सुशोभित किया ।।६।।६२।।
श्रीपानन्दी गुरुने बलात्कारगणमें अग्रसर होकर पट्टारोहण किया है और जिन्होंने पाषाणघटित सरस्वतीको उज्जयन्तगिरि पर बादिके साथ वादित कराया (बुलवाया) है, तबसे ही सारस्वत गच्छ चला ।इसी उपकृतिके स्मरणार्थ उन श्रीपानन्दी मुनिको मैं नमस्कार करता हूँ ॥६३॥
पट्टाक्ली : ४०३