Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 4
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala
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जयसवालकुलोत्पन्न कवि माणिकचन्द हैं। इस कथाकी रचना टोडरसाहूके पुत्र ऋषभदासके हेतु हुई है। कवि मलयकोत्ति भट्टारकके वंशमें उत्पन्न हुया था । ये मलयकीति यश कीत्तिके पट्टघर थे । ___ ग्रंथका रचनाकाल वि० सं० १६३४ है।' अतः कविका समय १७वीं शती निश्चित है।
'सत्तवसणकहा-इसमें सप्तव्यसनोंको सात कथाएं निबद्ध हैं । कथा ग्रंथ सात सन्धियोंमें विभक्त है | यह प्रबन्ध शैलीमें लिखा गया है। कथामें वस्तुवर्णनोंका आधिक्य नहीं है । कथा सीधे और सरल रूपमें चलती है। संवादयोजना बड़ी मधुर है। भाषा सरल और स्पष्ट है । युद्ध-वर्णन विस्तृत रूपमै मिलता है । यहाँ उदाहरणार्थ कुछ पंक्तियाँ प्रस्तुत हैं
सा उहय वालहि संगामु जाउ, भड भडहि रहहु भिडिउ ताउ । गउ गहि पुणु हल हयहि वग, खण खण करत करिवार अग्गु । वरहि समरंगण वाणपति, णावइ धाराहर धणहु जुत्ति ।
रणभूमें भउहिम भडु णिरुद्ध, गउ गयहि तुरिउ तुरएहि कुद्ध । (७.२४) इस कथाकाव्यमें कृष्ण और जरासंघका युद्ध, नेमीश्वरका विवाह द्यूतक्रीड़ा आदिका वर्णन आया है। इन वर्णनोंसे यह स्पष्ट है कि यह एक कथा काव्यात्मक संग्रह है, जिसमें ७ व्यसनोंफी कथाएं अलग-अलग काव्यात्मक रूपमें लिखी गई हैं। इसमें लोकोक्तियों और देशी शब्दोंकी भी प्रचुरता है।
भगवतीदास भगवतीदास भट्टारक गणचन्द्र के पट्टधर भट्टारक सकलचन्द्रके प्रशिष्य और महीन्द्रसेनके शिष्य थे। महीन्द्रसेन दिल्लीकी भट्टारकीय गद्दोके पट्टधर थे। पंडित भगवतीदासने अपने गरु महीन्द्रसेनका बड़े आदरके साथ स्मरण किया है । यह बढ़िया, जिला अम्बालाके निवासी थे। इनके पिताका नाम किसनदास था । इनकी जाति अग्रवाल और गोत्र बंसल था। कहा जाता है कि चतुर्थ वयमें इन्होंने मुनिव्रत धारण कर लिया था।
कवि भगवतीदास संस्कृत, अपभ्रंश और हिन्दी भाषाके अच्छे कवि और विद्वान थे। ये बढ़ियासे योगिनीपुर (दिल्ली। आकर बस गये थे। उस समय दिल्लीमें अकबर बादशाहके पुत्र जहाँगीरका राज्य था। दिल्लोके मोतीबाजार१, अह सोलह सह चउतीस एण, चइतहु उज्जल-पपखें सुहेण ।
आइववार तिहि पंचमीहि, इहु गंधू समरण हउ विहीहि । ७-३२।
२३८ : तीर्थकर महावीर और उनकी आचार्य-परम्परा