Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 4
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala
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साके वचन हिये में धार । भाषा कीनी मति अनुसार ॥ रविषेणाचारज- कृत सार । जाहि पढ़ें बुधजन गुणधार ||७|| जिनर्धामिनकी आज्ञा लेय। जिनशासन माहों चित दय ॥ आनन्दसुतने भाषा करी । नंदो विरदो अति रस भरी ॥८॥
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सम्वत् अष्टादश शत जान । ता ऊपर तेईस बस्तान (१८२३ ) || शुक्ल पक्ष नवमी शनिवार । माघ मास रोहिणी ऋख सार ||१०||
आचार्यकल्प पं० टोडरमल
महाकवि आशाधरके अनुपम व्यक्तित्वकी तुलना करनेवाला व्यक्तित्व आचार्यकल्प पं० टोडरमलजीका है। इन्हें प्रकृतिप्रदत्त स्मरणशक्ति और मेवा प्राप्त थी । एक प्रकारसे ये स्वयं बुद्ध थे । इनका जन्म जयपुर में हुआ था । पिताका नाम जोगीदास और माताका नाम रमा या लक्ष्मी था। इनकी जाति खण्डेलवाल और गोत्र गोदीका था । ये शैशवसे ही होनहार थे। गूढ़-से-गूढ़ शंकाओंका समाधान इनके पास मिलता था । इनकी योग्यता एवं प्रतिभाका ज्ञान तत्कालीन सघर्मी भाई रायमल्लने इन्द्रध्वज पूजाके निमन्त्रणपत्र जो उद्गार प्रकट किये हैं उनसे स्पष्ट हो जाता है । इन उद्गारोंको ज्यों-का-त्यो दिया जा रहा है
"यहाँ घणां भायां और घण बायां व्याकरण व गोम्मटसारजोकी चर्चा का ज्ञान पाइए हैं । सारा ही विषे भाईजी टोडरमलजीके ज्ञानका क्षयोपशम अलौकिक है, जो गोम्मटसारादि ग्रन्थों की सम्पूर्ण लाल श्लोक टीका बणाई, और पाँच-सात ग्रन्थोंकी टीका बणायवे का उपाय है । न्याय, व्याकरण, गणित, छन्द, अलंकारका यदि ज्ञान पाइये है। ऐसे पुरुष महन्त बुद्धिका धारक ईकाल विष होना दुर्लभ है । ताते यासू मिलें सर्वं सन्देह दूरि होय है । घणी लिखवा करि कहा आपणां हेतका वांछीक पुरुष शीघ्र आप यांसू मिलाप करो ।"
इस उद्धरणसे स्पष्ट है कि टोडरमलजी महान् विद्वान् थे । वे स्वभावसे बड़े नम्र थे । अहंकार उन्हें छू तक न गया था । इन्हें एक दार्शनिकका मस्तिष्क, श्रद्धालुका हृदय, साधुका जीवन और सैनिककी दृढ़ता मिली थी । इनकी वाणीमें इतना आकर्षण था कि नित्य सहस्रों व्यक्ति इनका शास्त्रप्रवचन सुननेके लिए एकत्र होते थे। गृहस्थ होकर भी गृहस्थी में अनुरक्त नहीं थे | अपनी साधारण आजीविका कर लेनेके बाद ये शास्त्रचिन्तनमें रत रहते
आचार्य तुल्य काव्यकार एवं लेखक : २८३