Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 4
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala
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को गहनतम भावनाओंको अभिव्यक्ति विद्यमान है । इस साहित्यको व्यापकताकी परिधिकी रेखाएकावेरीसे गोदावरोके सुरम्य अंचलको समेटतो हैं। इस साहित्यमें कन्नड़ प्रदेशकी धरतीको धड़कान समाहित है। कन्द साहित्यको अभिवृद्धिमें जैन कवियोंका योगदान कम महत्त्वपूर्ण नहीं है।
आदिपम्प कन्नड़ साहित्यका सर्वश्रेष्ठ कवि पम्प है | इसका समय ई० सन ९४१ है। इन्होंने 'आदिपुराण' और 'भारत' ग्रंथोंको रचना की है । ये दोनों ग्रन्थ चम्मू काव्य हैं। पम्पने स्वयं अपने सम्बन्ध में लिखा है--"मेरे विख्यात चिर नूतन समुद्रवत गम्भोर काध्य मेरे परवर्ती कवियोंके लिए प्रमोदप्रद है।" पम्पके वंशज वैदिक धर्मानुयायी थे। इसके पिता अविराम देवरायने जैनधर्म स्वीकार किया था।
पम्पने आदिपुराणमें काव्यके अमृतानन्दके साथ धार्मिक सिद्धान्तोंका भी निरूपण किया है । कवि पम्पमें कल्पना शक्तिका भी प्राचुर्य है। उनका दूसरा ग्रन्थ 'विक्रमाजन विजय' अर्थात् 'भारत' है । कविने इस ग्रन्थमें काव्य तत्त्वोंका निर्वाह सम्यक प्रकार किया है। नारीके नख-शिख चित्रणमें तो कवि संस्कृतके कवियोंसे भो बढ़ा-चढ़ा है। चरित्र-चित्रणमें भी कविको अपूर्व सफलता मिली है।
कवि पोन्न 'शान्तिपुराण जिनाक्षरमाले' के रचयिता पोन्न कविका समय ई. सन् ९५०के लगभग है। पोन्न प्रतिभाशालो कवि हैं। इसने शास्तिनाथपुराणमें विलक्षण उपमाओं और उत्प्रेक्षाओंका प्रयोग किया है।
कवि रन्न रन्न कविने 'अजितनाथपुराण'को रचना कर कन्नड़ साहित्यको समृड बनाया है । कविके इस पुराणका रचनाकाल ई० सन् १९३ है। कविने अपनी इस रचनामें काव्यकला, कोमल कल्पना और निविड भावोंकी अभिव्यक्तिके साय पौराणिक तथ्योंका भी समावेश किया है। कन्नड़के पोन्न कवि यदि संस्कृतके वाणभट्ट हैं, ता रन्न वसुवन्धु । शृङ्गार और शान्तरसका सम्मिश्रण सुन्दर रूपमें पाया जाता है । चरित्र-चित्रणको दृष्टि से भी रन्नका यह काव्य महत्त्व
आचार्यतुल्य काव्यकार एवं लेखक : ३०७