Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 4
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala
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हुआ था । इनके पिताका नाम आनन्दराम था । जाति खण्डेलवाल और गोत्र ये उदयपुर कासलीवाल था । जयपुरके महाराजसे इनका विशेष परिचय था । राज्यभं जयपुरके वकील और हाँ वर्षो तक रहे। संस्कृतके अच्छे ज्ञाता थे। हिन्दी गद्य साहित्य के क्षेत्रमें सबसे पहली रचना इन्हीं दौलतरामकी उपलब्ध है ।
ये दौलतराम पं० टोडरमल रायमल आदिके समकालीन थे । संस्कृत, हिन्दी और अपभ्रंश इन तीनों ही भाषाओंके विद्वान् थे । इनका समय विक्रम को १८वीं शतीका अंतिम भाग और १९वीं शतोका पूर्वाद्धं है । इन्होंने निम्नलिखित रचनाएँ लिखते हैं
१. पुण्यास्रववचनिका (वि० सं० १७७७), २. क्रियाकोषभाषा । वि० १७९५) ३. आदिपुराणवचनिका (सं० १८२४), ४. हरिवंशपुराण (सं० १८२९), ५. परमात्मप्रकाशवचनिका, ६. श्रीपाल चरित (सं० १८२२ ), ७. अध्यात्मबाराखड़ी ( वि० सं० १७९८), ८ वसुनन्दीश्रावकाचार टब्बा (वि० सं० १८१८), ९. पदमपुराणवचनिका (सं० १८२३), १०. विवेकविलास (वि० सं० १८२७), ११. तत्त्वार्थ सूत्रभाषा, १२. चौबीसदण्डक, १३. सिद्धपूजा १४ आत्मबत्तीसी, १५. सारसमुच्चय, १६. जीवंधरचरित (वि० सं० १८०५), १७. पुरुषार्थं सिद्धयुपाय जो पं० टोडरमल पूर्ण नहीं कर पाये थे ।
कविने पदमपुराणवचनिका में अपना परिचय देते हुए लिखा है कि रायमल्ल साधर्मी भाईकी प्रेरणा से इस ग्रन्थको वचनिका लिखी जा रही है । लिखा है
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विशेष ||
जम्बूद्वीप सदा शुभ पान | भरत क्षेत्र ता माहि प्रमाण ॥ उसमें आरजखंड पुनीत । वसें ताहि में लोक विनीत ॥ १ ॥ तिनके मध्य ढुंढार जु देश । निवसे जेनी लोक नगर सवाई जयपुर महा । तासकी उपमा जाय राज्य करें माधव नृप जहां । कामदार जैनी जन ठौर-ठोर जिनमंदिर बने । पूजें तिनकूं भविजन बसें महाजन नाना जाति । सेवं निजमारग रायमल्ल साधर्मी एक जाके घट में दयावन्त गुणवन्त सुजान। पर उपकारी परम दौलतराम सु ताको मित्र । तासों भाष्यों वचन पद्मपुराण महाशुभ ग्रन्थ । तामें लोकशिखरको भाषारूप होय जो येह । बहुजन बांच करें अति
बहु न्याति ॥
स्वपर - विवेक ॥४॥ निधान ॥
पवित्र ॥५॥
२८२ तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य-परम्परा
न
कहा ||२||
तहां ॥ घने ॥३॥
पन्थ ॥
नेह ॥६॥