Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 4
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala
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सेठ के सम्बन्धमें इन्होंने मनोरंजक घटना लिखी है। सेठकी दरिद्रताके कारण वह बनारस से अयोध्या चले गये, किन्तु वहाँ के मेठने सम्मान और तर सम्पत्ति के साथ वापस लौटा दिया। कविने होरामणिके उपदेश एवं आगरा निवासी सालिवाहण, हिसारके जगदत्त मिश्र तथा उसी नगरके रहनेवाले गंगराजके अनुरोध से 'धर्मपरीक्षा' नामक ग्रन्थकी रचना संवत् १७७५ में की है । यह रचना कहीं-कहीं बहुत सुन्दर है। इस ग्रन्थका परिमाण ३००० पद्य है । कविने अपना परिचय निम्न प्रकार दिया है :
कविता मनोहर खंडेलवाल सोनी जाति,
मूलसंघी मूल जाकी सांगानेर वास है । कर्मके उदय तें धामपुर में वसन भयो,
सबसौं मिलाप पुनि सज्जनको दास है । व्याकरण छंद अलंकार कछु पढ्यौ नाहि,
भाषा में निपुन तुच्छ बुद्धिका प्रकास है । बाई दाहिनी कछू समझे संतोष लीयै, जिनकी दुहाई जाऊँ जिन हो की आस है ।
नथमल विलाला
नथमल बिलाला आगराके रहनेवाले थे। इन्होंने वि० सं० १८२७ में 'वरांगचरित भाषा' की रचना करनेवाले अटेर निवासी पाण्डेय लालचन्द्रको सहायता प्रदान की थी।" नथमलके पिताका नाम शोभाचन्द्र था और गोत्र विलाला, ये प्रतिभाशाली कवि थे । इनकी रचनाएं निम्न लिखित हैं
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१. सिद्धान्तसार दीपक (वि० सं० १८२४) २. जिनगुणविलास
३. नागकुमारचरित (वि० सं० १९८३४) ४. जीवंधरचरित (वि० सं० १८३५) ५. जम्बूस्वामी चरित
पंडित दौलतराम कासलीवाल
पं० दौलतरामजी कासलीवालका जन्म वि० सं० १७४५ में बसवा ग्राममें १. नन्दन सोभाचन्दको नथमल अति गुनवान। गोत बिलाला गगनमें उद्यो चंद समान || नगर आगरो तज रहे, हीरापुर में आय करत देखि इस ग्रंथ को कीनी अधिक सहाय ||
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