Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 4
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala
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१. चिविलास २. अनुभवप्रकाश ३. गुणस्थानभेद ४. आत्मावलोकन ५. भावदीपिका
६. परमार्थपुराण ये रचनाएं गद्यमें लिखी गयी हैं ।
७. अध्यात्म पच्चीसी ८. द्वादशानुप्रेक्षा ९. ज्ञानदर्पण १०. स्वरूपानन्द
११. उपदेशसिद्धान्त कविने गद्य रचनाओं में अपने भावोंको पूर्णतया स्पष्ट करनेका प्रयास किया है। पद्यमें भी इन्होंने सहजरूपमें अपने भावोंको अभिव्यक्त किया है । यहाँ उदाहरणार्थ ज्ञानार्णव और उपदेशरत्नमालासे दो एक पद्य उद्धत किये जाते हैंअलख अरूपी अजआतम अमित तेज, एक अविकार सारपद त्रिभुवनमें । चिरलौ सुभाव जाको समहू सम्हारो नाहि, परपद आपो मानि भम्यो भववनमें।। करम कलोलनिमें मिल्यो है निशङ्कमहा, पद-पद प्रतिरागी भयो तन-तनमें । ऐसी चिरकालकी बहु विपति विलाय जाय कहू निहार देखो आप निजधन में ।।
-ज्ञानदपंण, पद्य ४६
मानि पर आपो प्रेम करत शरीरसेती, कामिनी कनकमांहि करै मोह भावना। लोकलाज लागि मूढ आपनौं अकाज करें, जाने नहीं जे जे दुख परगति पावना ।। परिवार प्यार करि बाँध भव-भार महा, बिनु हो विवेक करै फालका गमावना। कहै गुरुजान नाव बैठ भव सिन्धुतरि, शिवथान पाय सदा अचल रहावना ।।
उपदेशरत्नमाला, पद्य ६ कविकी प्रतिभाका प्रवेश आध्यात्मिक रचनाओंके लिखने में विशेषरूपसे हुआ है।
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