Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 4
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala
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अर्थसंदृष्टि और ४. गोम्मटसारपूजा परिगणित हैं। टीकाग्रन्थ निम्न लिखित हैं:१. गोम्मटसार ( जीवकाण्ड ) - सम्यग्ज्ञानचन्द्रिका | यह सं० १८१५ में पूर्ण
हुई।
२. गोम्मटसार (कर्मकाण्ड ) -
३. लब्धिसार
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टीका सं० १८१८में पूर्ण हुई ।
४. क्षपणासार - वचनिका सरस है ।
५ त्रिलोकसार - इस टीकामें गणितको अनेक उपयोगी और विद्वत्तापूर्ण
चर्चाएं की गई हैं।
६. आत्मानुशासन - यह आध्यात्मिक सरस संस्कृत ग्रन्थ है। इसको बच निका संस्कृत टीकाके आधारपर है ।
७. पुरुषार्थसिद्ध्युपाय — इस ग्रन्थको टीका अधूरी हो रह गई है ।
मौलिक रचनाएं
१. अर्थसंदृष्टि, २. आध्यात्मिक पत्र, ३. गोम्मटसारपूजा और ४. मोक्षमार्ग
प्रकाशक ।
इन समस्त रचनाओंमें मोक्षमार्ग प्रकाशक सबसे महत्त्वपूर्ण है । यह ९ अध्यायोंमें विभक्त है और इसमें जैनागमका सार निबद्ध है। इस ग्रन्थके स्वाध्यायसे आगमका सम्यग्ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है। इस ग्रन्थके प्रथम अधिकार में उत्तम सुख प्राप्तिके लिए परम इष्टअर्हन्त, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय एवं साधुका स्वरूप विस्तार से बतलाया गया है। पंचपरमेष्ठीका स्वरूप समझनेके लिए यह अधिकार उपादेय है । द्वितीय अधिकारमें संसारावस्थाका स्वरूप वर्णित है । कर्मबन्धनका निदान, कर्मोंके अनादिपनकी सिद्धि, जीव- कर्मोकी भिन्नता एवं कथंचित् अभिनता, योगसे होनेवाले प्रकृति- प्रदेशबन्ध कषायसे होनेवाले स्थिति और अनुभाग बन्ध, कर्मोंके फलदानमें निमित्त नैमित्तिकसम्बन्ध, द्रव्यकर्म और भावकर्मका स्वरूप, जीवको अवस्था आदिका वर्णन है ।
तृतीय अधिकारमें संसार - दुःख तथा मोक्षसुखका निरूपण किया गया है । दुःखोंका मूल कारण मिथ्यात्व और मोहजनित विषयाभिलाषा है । इसीसे चारों गतियोंमें दुःखकी प्राप्ति होती है। चौथे अधिकारमें मिथ्यादर्शन, मिथ्या ज्ञान और मिथ्याचारित्रका निरूपण किया गया है। इष्ट-अनिष्टकी मिथ्या कल्पना राग-द्वेषको प्रवृत्तिके कारण होती है; जो इस प्रवृत्तिका त्याग करता है उसे सुख की प्राप्ति होती है ।
पंचम अधिकार में विविधमत समीक्षा है । इस अध्यायसे पं० टोडरमलके
२८६ : तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य-परम्परा