Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 4
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala
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ओसवाल होने के कारण कविको जन्मना श्वेताम्बरसम्प्रदायानुयायी होना चाहिए; पर उनकी रचनाओंके अध्ययनसे उनका दिगम्बर सम्प्रदायानुयायी होना सिद्ध होता है। कविकी रचनाओंके अवलोकनसे ज्ञात होता है कि भैया भगवतीदासने समयसार, आत्मानुशासन, गोम्मटसार और द्रव्यसंग्रह आदि दिगम्बर ग्रन्थोंका पूरा अध्ययन किया है । उनकी आध्यात्मिक रचनाओं पर समयसारका पूरा प्रभाव है। ___इन्होंने स्तुतिपरक या भक्तिपरक जितने पद लिखे हैं उनमें तीर्थंकरोंके गुण और इतिवृत्त दिगम्बर सम्प्रदायके अनुसार अंकित हैं।
संवत सत्रह से इकतीस, माघसुदी दशमी शुभदोस ।
मंगलकरण परमसुखधाम, द्रवसंग्रह प्रति करहुं प्रणाम । द्रव्यसंग्रहको रचनाके साथ भैया भगवतीदासकी स्वप्नबत्तीसी, द्वादशानुप्रेक्षा, प्रभाती और स्तवनोंसे भी उनका दिगम्बर सम्प्रदायी होना सिद्ध होता है।
वि० सं० १७११में हीरानन्दजीने पंचास्तिकायका अनुवाद किया था। उसमें उन्होंने आगरामें एक भगवतीदास नामक व्यक्तिके होनेका उल्लेख किया है । संभवतः भैया भगवतीदास ही उक्त व्यक्ति हों । इन्होंने कवितामें अपना उल्लेख भैया, भविक और दासकियोमानामोदरे निया ने दमनी ममस्त रचनाओंका संग्रह ब्रह्मविलासके नामसे प्रकाशित है।
भैया भगवत्तीदासका समय वि० सं० को १८वीं शताब्दी है । इन्होंने अपनी रचनाओंमें औरंगजेबका उल्लेख किया है । औरंगजेबका शासनकाल वि० सं० १७१५-१७६४ रहा है । भैया भगवतीदासके समकालीन महाकवि केशवदास हैं, जिन्होंने रसिकप्रिया नामक शृंगाररसपूर्ण रचना लिखी है। कवि भगवतीदासने इस रसिकप्रियाको प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए लिखा है
बड़ी नीत लघु नीत करत है, बाय सरत बदबोय भरी। फोड़ो बहुत फुनगणी मंडित सकल देह मनु रोगदरी ॥ शोणित हाड़ मांसमय मुरत तापर रीझत घरी-घरी।
ऐसी नारी निरखि करि केशव रसिकप्रिया तुम कहा करी॥ अतएव भैया भगवतीदास १८वीं शताब्दीके कवि हैं। रचनाएं
भैया भगवतीदासकी रचनाओंका संग्रह ब्रह्मविलासके नामसे प्रकाशित है। इसमें ६७ रचनाएं सगृहीत हैं। इन रचनाओंको काव्यविधाकी दृष्टिसे निम्नलिखित वर्गोमें विभक्त किया जा सकता है:२६४ : तीयंकर महावीर और उनकी आचार्य-परम्परा