Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 4
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala
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आया रे बुढ़ापा मानी, सुधि-बुधि बिसरानी ॥ श्रवनकी शक्ति घटी, चाल चले अटपटी, देह लटी भूख घटी, लोचन झरत पानो ॥१॥ दाँतनकी पंक्ति टूटी, हाड़नकी सन्धि छूटी, कायाकी नगरी लूटी, जात नहि पहिचानी ||२|| बालांने वरन फेरा, रोगने शरीर घेरा, पुत्रहून आवे नेरा, औरोंको कहा कहानी ||३|| 'भूधर' समुझि अब स्वहित करोगे कब ? वह गरि है अब सब छह प्राचीन
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पदके अन्तिम चरणको कविने कई बार पढ़ा और अनुभव किया कि वृद्धावस्थामें हम सबकी ऐसी ही हालत होती है | अतः आत्मोत्यानकी ओर प्रवृत्त होना चाहिए। इस प्रकार कवि भूधरदासका व्यक्तित्व सांसारिकता से परे आत्मोन्मुखी है ।
इनकी रचनाओंसे इनका समय वि० सं० की १८वीं शती ( १७८१) सिद्ध होता है । रचनाएं
महाकवि भूधरदासने पार्श्वपुराण, जिनशतक और पद-साहित्यकी रचना कर हिन्दी साहित्यको समृद्ध बनाया है। इनकी कविता उच्च कोटिकी होती है।
१. पाइर्वपुराण – यह एक महाकाव्य है। इसकी कथा बड़ी ही रोचक और आत्मपोषक है । किस प्रकार वैरकी परम्परा प्राणियोंके अनेक जन्म जन्मान्तरों तक चलती रहती है, यह इसमें बड़ी हो खूबीके साथ बतलाया गया है । पार्श्व - नाथ तीर्थंकर होने के नौ भव पूर्व पोदनपुर नगरके राजा अरविन्दके मन्त्री विश्वमूर्ति के पुत्र थे । उस समय इनका नाम मरुभूति और इनके भाईका नाम कमठ था । विश्वभूतिके दीक्षा लेने के अनन्तर दोनों भाई राजाके मन्त्री हुए और जब राजा अरविन्दने वज्रकीतिपर चढ़ाई की, तो कुमार मरुभूति इनके साथ युद्धक्षेत्र में आया । कमठने राजधानी में अनेक उपद्रव मचाये और अपने
हरीसिंह शाहके सुवंश धर्मरागी नर, तिनके कहे सौं जोरि कौनी एक ठाने हैं । फिर-फिर मेरे मेरे आलसको अन्त भयो, उनकी सहाय यह मेरो मन माने हैं । सतरह से इक्यासिया, पोह पाख तमलीन । तिथि तेरस रविवारको सतक समाप्त कीन ॥
- जिनशतकप्रशस्ति
आचार्य तुल्य काव्यकार एवं लेखक : २७३
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