Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 4
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala
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करत कुशील बढ़त बहु पापू, नरफि जाइ तिउ हइ संतापू । जिउ मघुविंदु तनूसुख लहिये, शील विना दुरगति दुख सहिये।
१९. अनेकार्य नाममाला-यह कोषग्रन्थ है। इसमें एक शकरके अनेकानेक अोंका दोहोंमें संग्रह किया है। इसमें तीन अध्याय है और प्रथम अध्यायमें ६३, द्वितीयमें १२२ और तृतीयमें ७१ दोहे लिखित हैं। यह वनारसीदासको नाममालासे १७ वर्ष बादकी रचना है।
२०. मृगांकलेखाचरित-इस ग्रन्थमें चन्द्रलेखा और सागरचन्द्रके चरितका वर्णन करते हुए चन्द्रलेखाके शोलवतका महत्त्व प्रदर्शित किया गया है । चन्द्रलेखा नाना प्रकारको विपत्तियोंको सहन करते हुए भी अपने शीलवतसे च्युत नहीं होती।
इस ग्रन्थकी कथावस्तु चार सन्धियोंमें विभक्त है । इस अपभ्रंश-काव्यमें काव्यतत्त्वोंका पूर्णतया समावेश हुआ है । कवि चन्द्रलेखाका वर्णन करता हुआ कहता है
सुहलाग जोइ वर सुह परवत्ति, सुउवण कण्ण णं काम त्ति । कम पाणि कवल सुसुवग्ण देह, तिहं गांउ धरिउ सुमइंक लेह । कमि कमि सुपवढइ सांगुणाल, दिग मिग ससियत्तु मराल बाल | रूव रइ दासि व णियडि तासु, किं वपणाम अमरी खरि जासु । लछी सुविलछो सोह दित्ति, तिहं तुल्लि ण छज्जह बुद्धि कित्ति ।
-मृगांक ११३ चन्द्रलेखाकी आंखें मृगकी आँखोंके समान, वक्त्र चंद्रके समान और चाल हंसके समान थो । उसके निकट रति दासोके समान प्रतीत होती थी, अतः इस स्थितिमें अमरांगना या विद्याधारी उसकी समता कैसे कर सकती थी ? ___ग्रन्थको भाषा खिचड़ो है। पद्धड़ोबन्धमें अपभ्रंश, दोहा-मोरठा आदिमें हिन्दी और गाथाओंमें प्राकृतभाषाका प्रयोग किया है।
इस प्रकार भगवतीदासने अपभ्रंश और हिन्दीमें काव्य-रचनाएं लिखकर जिनवाणीको समृद्धि को है।
अपभ्रंशके अन्य चर्चित कवि अपभ्रंश-साहित्यकी समृद्धिमें अनेक कवि और लेखकोंने योगदान दिया है। इन कवियों द्वारा विरचित अधिकांश रचनाएँ अप्रकाशित हैं। अतः उनका यथार्थ मूल्यांकन तब तक संभव नहीं है, जबतक रचनाएं मुद्रित होकर सामने न आ जायें। अपभ्रशमें ऐसे और कई कवि और लेखक हैं जिन्होंने
आचार्यतुल्य काष्यकार एवं लेखक : २४१
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