Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 4
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala
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समाधिमरण ग्रहण करता है तथा पाँच दिनोंके समाधिमरण द्वारा स्वर्गमं अवधिज्ञानी देव होता है । द्वितीय सन्धि में सम्यक्त्वके अतिचार और शंकादि दोषोंके उदाहरण आये हैं। इन उदाहरणोंको स्पष्ट करने के लिए आख्यानोंकी योजना की गई है। तृतीय सन्धिमें उपगूहन आदि सम्यक्त्वके चार गुण बतलाये हैं और उपगूहनका दृष्टान्त लिएर राजकुमार विशाखको कथा आई है। प्रसंगवश इस कथा में विष्णुकुमारमुनि और राजा बलिका आख्यान भी वर्णित है। चतुर्थ सन्धिमें प्रभावनाविषयक वञ्चकुमार की कथा अंकित है। पंचम सन्धि में श्रद्धानका फल प्रतिपादित करने के लिए हस्तिनापुर के राजा धनपाल और सेठ जिनदासकी कथा आयी है । छठी सन्धिमें श्रुतविनयका आख्यान, गुरुनिन्हवकथा, व्यंजन हीनकथा, अर्थहीन कथा, सप्तम सन्धिमें नागदत्तमुनिकथा, शूरमित्रकथा, वासुदेवकथा, कल्हास मित्रकथा और हंसकथा, अष्टम सन्धिमें हरिषेणचक्रीकथा, नवम सन्धिमें विष्णुप्रद्युम्नकथा और मनुष्यजन्मको दुर्लभता सिद्ध करनेवाले दृष्टान्त, दशम सन्धिमें संघीकथा एकादश सन्धिमें द्रव्यदत्तका आख्यान, जिनदत्त व सुदत्तका आख्यान, लकुचकुमारका आख्यान, पद्मरथका आख्यान, ब्रह्मदत्त चक्रवर्तीआख्यान, जिनदास - आख्यान, रूद्रदत्त - आख्यान, द्वादश सन्धिमें श्रेणिकचरित, त्रयोदश सन्धिमें श्रेणिकका महावीरके समवशरण में जाना और वहाँ धर्मोपदेशका श्रवण करना, पन्द्रहवीं और सोलहवीं सन्धियोंमें विविध प्रश्न और आख्यानोंका वर्णन है । सत्रहवीं और अठाहरवीं सन्धिमें करकंडुका चरित वर्णित है । १९ वों और २० वीं सन्धिमें रोहिणीचरित वर्णित है । २१ व सन्धिमें भक्ति और पूजाफल सम्बन्धो आख्यान निबद्ध हैं । २२वीं सन्धिमें नमोकारमन्त्रको अराधना के फलको बतलानेवाले सुदर्शन आदिके आख्यान अंकित हैं । २३ वीं, २४ वीं और २५ बी सन्धियों में ज्ञानोपयोग के फलसम्बन्धी कथानक अंकित है । २६ वीं ओर २७ वीं सन्धिमें दान और धर्मसम्बन्धी कथानक आये हैं । २८ वींसे लेकर ३४ वीं सन्धि तक पंच पाप और विकारसम्बन्धी तथ्योंके विश्लेषण के लिए कथानक अंकित किये गये हैं । ३५ वीं सन्धिमें प्रशंसनीय महिलाओंक आख्यान, ३६ वीं सन्धिमें श्रावकधर्म और पंचाक्षरमन्त्र के उपदेशसम्बन्धी आख्यान गुम्फित हैं । ३७ वीं सन्धिमें शकटमुनि और पाराशर की कथा, ३८ वीं सन्धिमें सात्यकी रूद्रकथा ६९ वीं सन्धिमें राजमुनि कथा, ४० वीं सन्धिमें अर्थकी अनर्थमूलता सूचक आख्यान वर्णित हैं । ४१ वीं सन्धिमें धन के निमित्तसे दुःख प्राप्त करनेवाले व्यक्तियोंके आख्यान वर्णित हैं । ४२वीं सन्धिम निदानसे सम्बन्धित कथाएं आयी हैं । ४३वीं सन्धिमें तीनों शल्योंसे सम्बन्धित कथानक, ४४ वीं सन्धिमें स्पर्शन-इन्द्रियके अधीन रहनेवाले
१३६ : तोथंकर महावीर और उनकी आचार्य - परम्परा
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