Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 4
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala
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सन्दोहका रचनाकाल संवत् १०५० है और इस संघके दूसरे बड़े साहित्यकार अमरकोत्ति थे, जिन्होंने वि० सं० १२४७ में अपन शका 'छक्कम्मोवएस' लिखा. है । अतएव उदयचन्द्र माथुर संघके आचार्य थे।
उदयचन्द्रने सुगन्धदशमी कथाके रचना-स्थानका उल्लेख नहीं किया। किन्तु उनके शिष्य बालचन्द्रने 'नरगउतारीकथा' का रचनास्थल यमुना नदीके तटपर बसा हुआ महावन बतलाया है। विनयचन्द्रने अपनी दो रचनाओं-'निसरपंचमीकथा' और 'चूनही' को त्रिभुवनांगारमें रचित कहा है। डॉ० हीरालालजीने महावनको मथुराके निकट यमुनानदीके तटपर बसा हुआ बताया है । और त्रिभुवनगिरि तिहनगढ़-थनगिर है, जो मथुरा या महावनसे दक्षिण पश्चिमकी ओर लगभग ६० मील दूर राजस्थानके पुराने करौली राज्य
और भरतपुर राज्यमें पढ़ता है। इस प्रकार इन अन्यकारोंका निवास और विहार प्रदेश मथुरा जिला और भरतपुर राज्यका भूभाग माना जा सकता है। स्पितिकाल
उदयचन्द्रने अपनी रचना सुगन्धदशमीकथामें रचनाकालका निर्देश नहीं किया है और न विनयचन्द्रने ही अपनी किसी रचनामें रचनाकालका उल्लेख किया है । चुनड़ीमें यह अवश्य लिखा है कि त्रिभुवनगिरिमें अजयनरेन्द्र के राजविहारमें रहते हुए इस ग्रंथकी रचना की। डॉ० हीरालाल जैनकार कथन है कि भरतपुर राज्य और मथुरा जिलाके भूमिप्रदेशपर यदुवंशी राजाओंका राज्य था, जिसकी राजधानी श्रीपथ-बयाना थी। यहाँ ११वीं शतीके पूर्वार्द्ध में जगत्पाल नामक राजा हुए। उनके उत्तराधिकारी विजयपाल थे, जिनका उल्लेख विजय नामसे बयानाके सन १०४४ ई. के उत्कीर्ण लेख में किया गया है। इनसे उत्तराधिकार त्रिभुवनपालने बयानासे १४ मील दूरीपर तिहनगढ़ नामका किला बनवाया । इस वंशके अजयपाल नामक राजाको एक प्रशस्ति खुदी मिली है, जिसके अनुसार सन् ११५० ई० में उनका राज्य वर्तमान था। इनका उत्तराधिकारी हरिपाल हुआ, जिसका ११७० ई० का अभिलेख मिला है।
तिहनगढ़ या थनगढ़पर ११९६ ई० मुइजुद्दीन मु० गोरीने आक्रमण कर वहाँके राजा कुवरपालको परास्त किया। और वह दुर्ग वहाउद्दीन तुरिलको सौंप दिया । इस प्रकार मथुरापर १२वीं शती तक यदुवंशकी राज्यपरम्परा बनी रही। १. सुगन्धवशमी कथा, भारतीय जापपीठ प्रकाशन, प्रस्तावना, प० ।।
१८६ : तोयंकर महावीर और उनकी भाचार्य परम्परा