Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 4
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala
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वनमें वस्त्रालंकारका त्यागकर दिगम्बरमुद्रा धारण कर लेते हैं ।
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तीसरी सन्धिमें राजमतिकी वियोगावस्थाका चित्रण है । कविने बड़ी सहृदयता और सहानुभूतिके साथ राजमत्तिकी करुण भावनाओंका चित्रण किया है। राजमति भी विरक्त हो जाती है और वह भी तपश्चरण द्वारा आत्म-साधना में प्रवृत्त हो जाती है ।
चतुर्थ संधिमें तपश्चयक द्वारा नेमिनाथको केवलज्ञानकी प्राप्ति होनेका कथन आया है। उनकी समरण आयोजित होती है। वे प्राणिकल्याणायं धर्मोपदेश देते हैं और अन्तमें निर्वाण प्राप्त करते हैं । कविने संसारकी विवशताका सुन्दर चित्रण किया है । कवि कहता है
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जहि अण्णु त अरुइ होद, जसु भोजसत्ति तसु ससु ण होइ । जसु दा छाहु तसु दविणु पत्थि, जसु दविणु तासु अइ-लो अस्थि । जसु मयण राज तसि णत्थि भाम, जसु भाम तसु छवण काम ॥३१२
अर्थात् जिस मनुष्यके घरमं अन्न भरा हुआ है उसे भोजनके प्रति अरुचि है । जिसमें भोजन पचाने की शक्ति है उसे शस्य अन्न नहीं । जिसमें दानका उत्साह है उसके पास धन नहीं। जिसके पास धन है उसमें अतिलोभ है । जिसमें कामका प्रभुत्व है उसके भार्या नहीं। जिसके पास भार्या है उसका काम शान्त है ।
कविने सुभाषितों का भी प्रयोग यथास्थान किया है। इनके द्वारा उसने काव्यको सरस बनाने को पूरी चेष्टा की है ।
कि जीयइ धम्म-विवज्जिगुण-धर्मरहित जीनेसे क्या प्रयोजन ? किं सुउई संगरि कायरेण - युद्ध में कायर सुभटोंसे क्या ?
किं वयण असच्चा भासणेण - झूठ वचन बोलनेसे क्या प्रयोजन है ? कि पुत्तइ गो-विणासणेण - कुलका नाश करनेवाले पुत्रसे क्या ? कि फुल्लई गंध-विवज्जिएणरहित फूलसे क्या ?
इस ग्रन्थ में श्रावकाचार और मुनि आचारका भी वर्णन आया है।
तेजपाल
तेजपाल के तोन काव्य-ग्रन्थ उपलब्ध हैं । कवि मूलसंघके भट्टारक रत्नकौत्ति, भुवन कीत्ति, धर्मकोत्ति और विशालकोत्तिकी आम्नायका है। वारावपुर नामक गाँव में बरसावद वंशमें जाल्हु नामके एक साहू थे । उनके पुत्रका नाम सुजज साहू था। वे दयावन्त और जिनधर्म में अनुरक्त थे। उनके चार पुत्र थे— रणमल, बल्लाल, ईसरु और पोल्हणु । ये चारों ही भाई खण्डेलवाल
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आचार्य तुल्य काव्यकार एवं लेखक : २०९