Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 4
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala
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आणि वि मुणि भासियउ, राएँ गुण अणुराउ वहते ।
लयउ धम्मु सावय जाह, ति-य रणे हि विहिउ उत्तम सत्ते ।" कविका दूसरा ग्रन्थ 'नरकउतारोदुधारसी कथा' है । इस कथाम नरकगतिसे उद्धार करनेके लिए वारक्रमानुसार रसका परित्यागकर व्रताचरण करने और इस व्रताचरणके द्वारा प्राप्त किये गये फलका कथन किया है। ग्रन्थके आरम्भमें लिखा है
समवसरण-सीहासण-संठिउ, सो जि देव महु मणह पइट्ठउ । अवर जी हरिहर बंभु पडिल्लउ, ते पुण णमउं / मोह-गहिल्ला ॥
छह सण जा थिर करइ वियरइ वुद्धि-पगासा ।
सा सारद जब पुज्जियइ, लब्भइ बुद्धि सहासा । उदयचन्द्र मुणि गणहि जुगइणउ सोमई भावें मणि अणुसरिउ । वालइंदु सुणि णविवि णिरंतरु णरगउतारी कहयि कहतर । इस प्रकार मुनि बालचन्द्रने अपभ्रशमें कथा-ग्रन्थोंकी रचना कर माहित्यिक समृद्धिमें योगदान किया है।
विनयचन्द्र विनयचन्द उदयचन्द्रके प्रशिष्य और बालचन्द्र के शिष्य थे । उदयचन्द्र और बालचन्द्रके समयपर पूर्व में प्रकाश डाला जा चुका है । अतएव उनका समय ई० सन्की १२वीं शताब्दी प्रायः निर्णीत है। विनयचन्द्र ने तीन रचनाएँ लिखी हैं-१. चूनडीरास, २. निर्झरपंचमीकहारास और ३. कल्याणकरास ।
चूनडीरासमें ३२ पद्य हैं। यह रूपक-काव्य है । कवि मुनिविनयचन्द्रने चूनड़ी नामक उत्तरीयवस्त्रको रूपक बनाकर गीतिकाव्यकी रचना की है। कोई मुग्धा युवती हैंसती हुई अपने पतिसे कहती है कि हे प्रिय ! जिनमंदिरमें भक्तिभावपूर्वक दर्शन करने जाइये और कृपाकर मेरे लिये एक अनुपम चूनड़ी छपवाकर ले आइये, जिससे में जिनशासनमें प्रवीण हो सकूँ । वह यह भी अनुरोध करती है कि यदि आप उसप्रकारकी चुनड़ी छपवाकर नहीं दे सकेंगे, तो वह छापने वाला छीपा तानाकशी करेगा। पति पत्नीकी बातें सुनकर कहता है-हे मुग्धे, वह छीपा मुझे जैनसिद्धान्तके रहस्यसे परिपूर्ण एक सुन्दर चूनड़ी छापक देनेको कहता है ।
कविने इस चूनड़ीरासमें द्रव्य, अस्तिकाय, गुण पर्याय, तत्त्व, दशधर्म, प्रत आदिका विश्लेषण किया है। . चूनड़ी उत्तरीयबस्त्र है, जिसे राजस्थानकी महिलाएं ओढ़ती हैं। कविने
आचार्यसुल्य काव्यकार एवं लेखक : १९१