Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 4
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala
View full book text
________________
सम्मत्तगुणणिद्वाणकथ्व
यह अध्यात्म और आचारमूलक काव्य है । इसमें कविने सम्यग्दर्शन और उसके आठ अंगो के नामोल्लेख कर उन अंगोंको धारण करनेके कारण प्रसिद्ध हुए महान् नर-नारियोंके कथानक अंकित किये हैं । ग्रन्थमें चार सन्धियाँ और १०२ कड़वक हैं | जसहरधरिज
रघूने भट्टारक कमलकीर्तिकी प्रेरणासे अग्रवालकुलोत्पत्र श्रीहेमराज संघपतिके आश्रय में रहकर इस ग्रन्थकी रचना की है। इसमें ४ सन्धियाँ और १०४ कड़वक हैं । पुण्यपुरुष यशोधरकी कथा वर्णित है ।
विससार
इस रचना में कुल ८९३ गाथाएँ हैं और ७ अंक हैं । कविने सिद्धोंको नमस्कार कर व्रतसार नामक ग्रन्थ के लिखनेकी प्रतिज्ञा की है । इसमें सम्यग्दर्शन, १४ गुणस्थान, द्वादशव्रत, ११ प्रतिमा, पंचमहाव्रत, ५ समिति, षड्आवश्यक आदिके साथ कर्मोकी के विधि प्रदेशबन्ध, अनुभागबन्ध, द्वादश अनुप्रेक्षाएँ, दशधर्म, ध्यान, तीनों लोक आदिका वर्णन आया है । सिद्धान्त विषयको समझने के लिए यह ग्रन्थ उपयोगी है । सिद्धसत्यसारो (सिद्धान्तार्थसार )
द्वादश
इसमें १३ अंक और १९३३ गाथाएँ हैं । गुणस्थान, एकादश प्रतिमा, व्रत, सप्त व्यसन, चतुविध दान, द्वादश तप, महायत समितियाँ, पिण्डशुद्धि, उत्पाददोष, आहारदोष, संयोजनदोष, इंगारधूमदोष, दातृदोष, चतुर्दश मलप्रकार, पंचेन्द्रिय एवं मन निरोध, षड्ज्ञावश्यक, कर्मबन्ध, कर्मप्रकृतियाँ, द्वादशांगश्रुत, द्वादशांगवाणीका वर्ण्यविषय द्वादश अनुप्रेक्षा, दश धर्म, ध्यान आदिका वर्णन आया है ।
Į
J
थमिकहा
इसमें रात्रि भोजनत्यागका वर्णन है । तथा उससे सम्बन्धित कथा भी आई है।
इसप्रकार महाकवि रइधूने काव्य, पुराण, सिद्धान्त, आचार एवं दर्शन विषयक रचनाएँ अपन शमें प्रस्तुत कर अपभ्रंश - साहित्यको श्रीवृद्धि की है । श्री पं० परमानन्दजी शास्त्रीके पश्चात् रइधू- साहित्यको सुव्यवस्थित रूपसे प्रकाशमें लाने का श्रेय डॉ० राजाराम जैनको है । महाकवि रघूने षट्धर्मोपदेशमाला, उवएसरयणमाला, अप्पसंब्बो कब्व और संबोहपंचासिका जैसे आचार सम्बन्धी ग्रन्थों की भी रचना की है ।
आचार्य तुल्य काव्यकार एवं लेखक : २०५