Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 4
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala
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बड्डमाणचरित __बड्ढमाणचरिउके प्रेरक साहू नेमिचन्द्र हैं। इनके अनुरोधसे कविने इस ग्रंथकी रचना को है। नेमिचन्द्रका परिचय ग्रंथके प्रारम्भ और अन्त में दिया गया है । कविने लिखा है--
इक्कहि दिणि णरवरणंदणेण । 'सोमा-जणी'-आणंदणेण ।। जिणचरणकमलइंदिदिरेण । जिम्मलयर-गुण-माण-मादरेण ॥ जायस-कुल-कमल-दिवायरेण । जिणभणियागम-विहिणायरेण ।। णामेण मिचन्देण वृत्तु । भो 'कइ-सिरिहर' सइत्थजुत्तु। जिह(ण) विरइउ चरिउ दुहोवारि । संसारुभव-संताव-हारि ॥२॥
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जायसवंस-सरोय-दिणेसहो। अदिचित्तणिहित्त जिणेसहो । गरवर-सोमइं-सणुसंभूबहो । साहु णेमिचंदहो मुणभूवहो ।। वयणे विरइउ सिरिहर णामें । तियरणरक्खिय असुहर गामें ॥
अन्तिम प्रशस्ति पत्र अर्थात् नेमिचन्द्र वोदाउ नामक नगरके निवासी थे और जायस या जयसवालकुल-कमलदिवाकर थे । इनके पिताका नान साहू नरवर और माताका नाम सोमादेवी था। माता-पिता बड़े ही धर्मात्मा और साधुस्वभावके थे । साहूनेमिचन्द्रको धर्मपत्नीका नाम 'वीवा' देवी था । इनके तीन पुत्र थेरामचन्द्र, श्रीचन्द्र और विमलचन्द्र । एक दिन साहू नेमिचन्द्रने कवि श्रीधरसे निवेदन किया कि जिस प्रकार चन्द्रप्रभचरित और शान्तिनाथचरित रचे गये हैं उसी तरह मेरे लिए अन्तिम सीर्थकरका चरित लिखिये । कविने प्रत्येक सन्धिके पुष्पिकावाक्यमें 'नेमिचन्द्रनामांकित' लिखा है । इतना ही नहीं, प्रत्येक सन्धिके प्रारम्भमें जो संस्कृत श्लोक दिया गया है उससे भी नेमिचन्द्र के गुणोंपर प्रकाश पड़ता है । द्वितीय सन्धिके प्रारम्भमें
नंदत्वत्र पवित्रनिर्मललसच्चारित्रभूषाघरो। धर्मध्यान-विधो सदा-कृत-रतिविद्वज्जनानां प्रियः ।। प्राप्तान्तःकरणेत्सिताऽखिलजगवस्तु-वजो दुजय
स्तत्त्वार्थ प्रविचारणोद्यतमनाः श्रीनेमिचन्द्रश्चिरम् ॥ स्पष्ट है कि नेमिचन्द्र धर्मध्यानमें निपुण, सम्यग्दृष्टि, धोर, बुद्धिमान, लक्ष्मीपति, न्यायवान, भवभोगोंसे विरक्त और जनकल्याणकारक थे। इस प्रकार कविने रचनाप्रेरकका विस्तृत परिचय प्रस्तुत किया है। ग्रंथ १० सन्धियोंमें विभक्त है १४२ : तीर्थकर महावीर और उनकी प्राचार्य परम्परा