Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 4
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala
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करनेवाली सुन्दरियां भी विक्षुब्ध हो उठीं। कोई स्त्री आवेगसे चंचल हो चल पड़ी, कोई विह्वल हो द्वार पर खड़ी हो गई, कोई मुग्धा प्रेमलुब्ध हो दौड़ पड़ी, किसीने गिरते हुए वस्त्रको भी परवाह न की, कोई अधरों पर काजल भरने लगी, कोई आँखोंमें लाक्षारस लगाने लगी, कोई दिगम्बरोंके समान आचरण करने लगी, किसीने बच्चेको उल्टा ही गोदमें ले लिया, किसीने नूपुरको हाथमें पहना, किसीने सिरके स्थानपर कटिप्रदेशपर माला डाल ली और कोई बेचारी बिल्लीके बच्चेको अपना पुत्र समझ सप्रेम छोड़ना नहीं चाहती ।..... कोई स्थिर और स्थूल पयोधर वाली, तप्त कनकच्छविके समान उज्ज्वल वर्ण वाली, मृगनयनी, मामिनी कामाकुल हो करकंडुके सामने चल पड़ो । ___ शोलगुप्त मुनिराजके आगमनपर पुरनारियोंके हृदयमै जैसा उत्साह दिखलाई पड़ता है वैसा अन्यत्र संभव नहीं। कविने लिखा है कि कोई सुन्दरी मानिनी मुनिके चरणकमलमें अनुरक्त हो चल दी, कोई नपुर-शब्दोंसे झनझन करती हुई मानों मुनिगुणगान करती हुई चल पड़ी। कोई मुनिदर्शनोंका हृदयमें ध्यान धरती हुई जाते हुए पतिका भी विचार नहीं करतो । कोई थालमें अक्षत और धूप भरकर बच्चेको ले वेगसे चल पड़ी | कोई सुगन्धयुक्त जाती हुई ऐसी प्रतीत होती थी, मानों विद्याधरो पृथ्वो पर शोभित हो रही हो।' __ कवि देश, नगर, ग्राम, प्रासाद, द्वीप, श्मशान आदिक वर्णनमें भा अत्यन्त पटु है । अंगदेशका चित्रण करते समय उसने उस देशको पृथ्वीरूपो मारीके रूपमें अनुभव किया है । इस प्रसंगमें सरावर, धान्यसे भरे खेत, कृषक बालाएं, पथिक, विकसित कमल आदिका भी चित्रण किया गया है ।२।
कनकामरने श्रृंगार, वीर और भयानक रसका अद्भत चित्रण किया है । नारीरूप-वर्णनमें कविने परम्पराका आश्रय लिया है और परम्परामुक्त उपमानोंका प्रयोग कर नारीके नख-शिखका चित्रण किया है । पद्मावतोके रूपचित्रणमें अधरोंकी रक्तिमाका कारण आगे उठी हुई नासिकाको उन्नतिपर अधरोंका कोप कल्पित किया गया है।
रतिवेगाके विलापमें कविने ऊहात्मक प्रसंगोंका प्रयोग किया है । वर्णनमें संवेदनाका बाहुल्य है । इसी प्रकार मदनावलीके विलुप्त होनेपर करकंडुका विलाप भी पाषाणको पिघला देने वाला है। १. करकंडुचरिउ ९।२, ३-७। २. वही श३-४-१० ।
पाचायतुल्य काव्यकार एवं लेखक : १६५